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के. आर. चन्द्र
अर्धमागधी में असि विभक्ति प्रत्यय के उदाहरण हैं -लोगंसि, आचा. १.१.१.९ (म. जै. वि.), केसि (पिशल ४२८) किन्तु पालि व्याकरण में नाम और सर्वनाम शब्दों में सप्तमी एक वचन के लिए -स्मि विभक्ति प्रत्यय का उल्लेख है और साहित्य मे उसका प्रयोग भी मिलता है जबकि अशोक के शिलालेखों में पश्चिम के सिवाय अन्य क्षेत्रों में सप्तमी एक वचन के लिए -सि (स्सि), विभक्ति प्रत्यय मिलता है (मेहेण्डले पृ० ५८३) ।
अर्धमागधी भाषा का –असि विभक्ति प्रत्यय इस तरह न तो व्याकरणों में, न पालि में और न हो अशोक के शिलालेखों मे मिलता है । परन्तु ईस्वी सन् की तीसरी शताब्दी में दक्षिण प्रदेश के क्रिष्णा जिले में तेनाली तालुके के कोंडमुडि गांव से मिले राजा जयवर्मन के ताम्र-पत्र मे–'असि' विभक्ति प्रत्यय एतसि' शब्द में पाया जाता है। इस तरह वररुचि और हेमचन्द्राचार्य ने -म्हि और -असि विभक्ति प्रत्ययों का सप्तमी एक वचन के लिए उल्लेख नहीं किया हैं परन्तु शिलालेखों से उनके प्रचलन का अनुमोदन होता है ।
ऊपर के विवरण के अनुसार सप्तमी एकवचन के विविध विभक्ति प्रत्ययों का विकास निम्न प्रकार से हुआ हो ऐसा साहित्यिक सामग्री, शिलालेखों और व्याकरणों से प्रमाणित होता हैसार्वनामिक विभक्ति प्रत्यय - (i) स्मिन् स्मि स्मि सि (अंसि)
___ (ii) स्मि स्मि म्हि म्मि
3. प्राकृत भाषा में अहम् के लिए अम्हि, अम्मि, म्मि के प्रयोग (हेमचन्द्र ८३
१०५) मिलते हैं और ये 'अस्मि' क्रियापद में से ही निकले हैं। ऐसा ही विकास -म्मि विभक्ति प्रत्यय का -स्मि में से हुआ है ।
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