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________________ आर. चन्द्र आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिकसूत्र और औपपातिकसूत्र से अनेक ऐसे उदाहरण दिये हैं जिनमें ज्ञ=ण्ण के साथ न्न भी मिलता है, जन्न (यज्ञ), मणुन्न (मनोज्ञ), नज्जइ (ज्ञायते), नाण (ज्ञान) इत्यादि । भरतनाट्यशास्त्र में तो जन्न (यज्ञ) का उदाहरण मिलता ही है । उन्होंने ज्ञण्ण का कोई उदाहरण नहीं दिया हैं । ज्ञन्न की परम्परा : श्री वररुचि और आ. हेमचन्द्र ने अलग से ज्ञन्न का कोई उल्लेख नहीं किया है परन्तु अर्धमागधी साहित्य में झन्न मिळता है । पिशल महोदय के अनुसार अर्धमागधी में झन्न्न की बहुलता पायी जाती है । अब प्रश्न यह होता है कि अर्धमागधी साहित्य में श=न और न्न कहाँ से आये ? प्रो. मेहेण्डले द्वारा ( पृ २८० ) किये गये शिलालेखों की भाषा के विश्लेषण के अनुसार ज्ञ के परिवर्तनों की प्रक्रिया इस प्रकार है * (I) अशोक के समय में पूर्वीक्षेत्र, मध्य और उत्तर में ज्ञ-न और न ( न्न) (II) अशोक के समय में पश्चिम, उत्तर-पश्चिम (दक्षिण में भी) ज्ञ=ज और ज (ञ) * शिलालेखों से उदाहरण शाति = नाति (घौली, जोगढ, कालसी और स्तंभलेख) शांति-जाति (गिरनार और दक्षिण के हो ख) शाजिना (घडी, नौगड, रुम्मिनीदेई) Jain Education International राज्ञा = रात्रा ( गिरनार, शाहबाजमड़ी) विज्ञाप - विनय (सारनाथ), विज्ञप्ति, विनति (इलाहाबाद - रानीलेख) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001436
Book TitleParamparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages162
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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