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________________ परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी ७६ सामान्य प्राकृत और ज्ञान ..... सामान्य प्राकृत में वररुचि (३.५.३.४ ४) और हेमचन्द्र के अनुसार (८.२.४२,८३,३.५५) ज्ञ का vण और ज्ज होता है । प्राकृत के इन व्याकरणकारों ने किसी भी प्राकृत भाषा के लिए ज्ञ-न्न का उल्लेख नहीं किया है । सिर्फ भरत के नाट्यशास्त्र (१७.२२), में ही यज्ञ के लिए 'जन्न' शब्द का प्रयोग प्राकृत भाषा के लिए बतलाया गया है । इस उदाहरण में ज्ञन्न स्पष्ट हो रहा है । पिशल द्वारा दिये गये उदाहरण : पिशल महोदय (२७६)को मागधी भाषा के लिए ज्ञ-ज्ज के उदाहरण साहित्य में कहीं पर भी नहीं मिले, मात्र प्रण के ही उदाहरण मिले हैं। अर्धमागधी और महाराष्ट्री साहित्य में से भी ज्ञ-उज के उदाहरण उन्हें नहीं मिले । शौरसेनी से मणोज्ज दिया है। परन्तु पाइयसद्दमहण्णवो के अनुसार प्रज्ञापना सूत्र में (अर्धमागधी) और उपदेशपद (जैन महाराष्ट्री) में मणोज्ज शब्द मिलता है । नाटको से उदारहण : स्वप्नवासवदत्तम् में आदि (ज्ञाति), विज्ञाण (विज्ञान) अज्ञाद (अज्ञात) और उसी नाटक में पडिण्णा (प्रतिज्ञा) और आणवेदि (आज्ञापयति) अर्थात् ञ और ण्ण वाले दोनों प्रकार के प्रयोग मिलते. हैं । भास के अन्य नाटकों में भी अ का प्रयोग मिलता है । परन्तु विक्रमोर्वशीयम् और मृच्छकटिकम् में ज्ञ का प्रण मिलता है । शाकुन्तलम् में भी ण (आणवेदि) मिलता है । पिशल को (२७६) अर्धमागधी साहित्य के सिवाय अन्य प्राकृत भाषा के साहित्य से कोई भी ऐसा उदाहरण नहीं मिला जिसमें ज्ञ का न्न हो। पिशल महोदय ने (२७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001436
Book TitleParamparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages162
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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