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९. प्राचीन प्राकृत भाषा में ज्ञ-न या पण
पालि भाषा में शब्द के प्रारम्भ में ज्ञञ और मध्य में ज्ञ ञ का प्रयोग मिलता है । जैसे-जाति (ज्ञाति), पंजा (प्रज्ञा) । लेकिन नामसिद्धिजातक में जब प्रज्ञप्ति के लिए पणत्ति शब्द मिले तो क्या समझना चाहिए ? यही कि प्राचीन पालि भाषा में ज्ञञ था और उत्तरवर्ती पालि में =Uण का प्रयोग भी चल पड़ा। इसी तरह के और प्रयोग जातकअट्ठकथा में मिलते हैं, जैसे-आणापति, आत्ति, आणत्ति । यह प्राकृत का प्रभाव है ऐसा सिद्ध होता है और यह भी कि पहले ज्ञ का आ बना और बाद में ज्ञ-ण चल पड़ा । मागधी में ज्ञ विषयक आदेश :
(1) श्री वररुचि के व्याकरण प्राकृत-प्रकाश में मागधी भाषा के अन्तर्गत ज्ञ के परिवर्तन के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। उसमें शौरसेनी भाषा को मागधी की प्रकृति मानी है अतः शौरसेनी में ज्ञ का आ (सूत्र १२.७) और ण (अर्थात् ण, सूत्र १२.८) होना जो बतलाया गया वही मागधी के लिए भी लागू होता है । प्रतियों के पाठान्तरों में ज्ञ=उज के स्थान पर ज्ज और 'अ (अर्थात् ज्ञ) भी मिलता है (देखिए-E.B.Cowell 3.5; 12.7 का कलकत्ता का संस्करण, १९६२) । . (II) पिशल (२७६) का यह मत है कि ज्ञ का ब्ज गलत है । पैशाची के सम्बन्ध में भी वे उसे गलत मानते हैं और उसमें ज्ज के स्थान पर आ को ही सही मानते हैं ।।
(III) आ. श्री हेमचन्द्र के व्याकरण के अनुसार मागधी में
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