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के. आर. चन्द्र
(च) आधुनिक भाषाओं में न का ण और ण का न
का ध्वनिगत
सभी प्राकृत भाषाओं में सर्वत्र नकार का णकार कर देना कहाँ तक उचित माना जायगा । इस विधान की हम अन्य दृष्टि से भी कसौटी कर सकते हैं । आधुनिक युग की भारतीय आर्यकुल की विविध भाषाओं जैसे कि हिन्दी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, ओरिया, बंगाली, इत्यादि में कुछ न कुछ ऐसे भिन्न भिन्न शब्द मिलते हैं जिनमें से किसी में नण और किसी में ण = नं परिवर्तन हुआ है । अमुक अमुक ऐसे शब्दों की कुछ न कुछ पूर्वकालीन स्थानीय-क्षेत्रीय परंपरा रही होगी अतः ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा कि इन प्रादेशिक भाषाओं के अपने अपने पूर्व काल की विभिन्न प्राकृत बोलियों में अलग अलग शब्दों में किसी में न-ण और किसी में ण=न का उच्चारण और प्रयोग चलता रहा होगा । ऐसे प्रयोग वास्तव में सीमित होंगे । ऐसा नहीं कि सभी शब्दों में नकार के स्थान पर णकार का प्रयोग होता होगा ।
वास्तविक रूप में देखा जाय तो संस्कृत भाषा के संदर्भ में कौनसी ऐसी आधुनिक भाषा है जिसमें नकार का णकार सर्वत्र या प्रायः होता हो । इस दृष्टि से प्राचीन प्राकृत भाषाओं (अर्धमागधी, इत्यादि और प्राचीन नाटकों की प्राकृत भाषा ) में सर्वत्र नकार का णकार किया जाना शिलालेखों की भाषा अर्थात् लोक-परंपरा से विमुख, अनुपयुक्त और अनुचित जान पडता है ।
भारतीय आर्यकुल की आधुनिक भाषाओं में प्रयुक्त कुछ शब्दों की
तालिका आगे दी गई है, जिसमें अमुक भाषाओं के कुछ शब्दों में
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नकार का णकार और कुछ शब्दों में णकार का नकार मिलता है । प्रस्तुत शब्दावली श्री टर्नर महोदय के
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कोश' 3 से दी गयी है जो
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