SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के आर. चन्द्र यह तो उलटा ण-न का प्रयोग (विष्णुम् ) है । मागधी और शौरसेनी भाषा में - तदो पूरिदपदिन मारुदिना मन्तिदो ( 8.4260 ) जैसे प्रयोग हैं । पं. बेचरभाई दोशी ने हेमचन्द्राचार्य के इस ग्रन्थ के गुजराती संस्करण में मारुदिना के स्थान पर मारुदिणा पाठ दिया है । 2 (देखिए पृ. 369 ) 1 ५२ मध्यवर्ती नकार के लिए कभी-कभी नकार का अपवाद के रूप में प्रयोग क्या प्राचीन जैन साहित्य तक ही मर्यादित था ? नहीं, ऐसा नहीं था | इतर साहित्य मे यहाँ तक कि महाराष्ट्री प्राकृत काव्य में भी ऐसे प्रयोग कभी कभी मिल जाते हैं । यथा१. शारिपुत्रप्रकरणम् के प्राकृत अंशों में नकार का णकार मिलता ही नहीं है । २. स्वप्नवासवदत्तम् में अपवाद के रूप मे मध्यवर्ती नकार का प्रयोग मिलता है - विना, ३. गाथासप्तशती में ये दो प्रयोग हैं- हिअअव्वण - फोडनं ( 381 ) नाथ ! तुमं ( 384 ), 4 यह प्रारम्भिक नकार का उदाहरण है । वेबर महादय के संस्करण में इन स्थलों पर 'हिअअवण फोडणं' और 'णाह' पाठ अपनाये गये हैं ।' क्यां यह वररुचि के प्राकृत व्याकरण का उन पर अति प्रभाव तो नहीं है ? ४. प्राचीन अर्धमागधी ग्रन्थों में भी अनेक बार मध्यवर्ती नकार की उपलब्धि हो रही है । यथा(1) आसडर्फ महोदय ने अर्धमागधी अध्ययन संपादित किये हैं उनमें बार यथावत् मिलता है 16 यथा Jain Education International आगम साहित्य से जो जो मध्यवर्ती दन्त्य नकार अनेक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001436
Book TitleParamparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages162
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy