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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी
मिलते हैं उन सब में प्रारम्भिक नकार के बदले णकार ही मिलता है । परन्तु हेमचन्द्र द्वारा दिये गये उदाहरणों की कथा कुछ और ही है। उन्होंने शब्द के प्रारम्भ में न के लिए वैकल्पिक णकार का परंपरागत नियम तो अपनाया परन्तु चौथे पाद में दिये गये धात्वादेशों को छोड़कर जितने भी उदाहरण अपने व्याकरण में प्राकृत भाषा के अन्तर्गत दिये हैं उनमें प्रारम्भिक नकार के लिए प्रयुक्त नकार और णकार का अनुपात ८:१ है अर्थात् नौ प्रयोगों में से एक शब्द में ही णकार है । धात्वादेशों में भी शब्दों के प्रारंभ में नकार के लिए नकार ३४ बार और णकार ५५ बार" मिलता है और उनका अनुपात २:३ का है । हेमचन्द्र के अपभ्रंश व्याकरण
८.४.३३२-४१२) में भी शब्द के प्रारम्भ में नकार के लिए प्राय: 'न' ही मिलता है। डॉ. पी. एल. वैद्य और पं. बेचरभाई दोशी4 के हेमचन्द्र के प्राकृत-व्याकरण के संस्करण में यही स्थिति है । डा. भायाणी ने आरम्भ में कुछ पदों में णकार अपनाया है परन्तु बाद के सभी पदों में नकार ही रखा है ।
प्राकृत भाषा की प्राचीन रचनाओं के अमुक संस्करणों में भी यही स्थिति है । मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित (म. ज. वि. संस्करण) उत्तराध्ययन, दशवैकालिक और आवश्यकसूत्र में प्रायः नकार का ही प्रयोग मिलेगा। वसुदेवहिंडी का जो संस्करण छपा है उसमें भी प्रारम्भिक नकार का प्रायः नकार ही मिलता है, जो हेमचन्द्र से करीब ६०० से ८०० वर्ष पुरानी कृति है । डॉ. याकोबी द्वारा सम्पादित घउमचारियं-विमलरि में भी यही स्थिति है । श्री एम.वी. पटवर्धन . द्वारा सम्पादित वज्जालगं में भी प्रारंभिक न का प्रायः न ही मिलता.. है । आचार्य जिनविजय मुनि द्वारा सम्पादित नम्मयासुन्दरीकहा में प्रारंभिक न की प्रायः यही स्थिति है। नम्मयासुन्दरीकहा १२ वीं शती
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