________________
के. आर. चन्द्र
____ यह निष्कर्ष हेमचन्द्र के नियम के साथ पूर्णतः साम्य रखता है । वे आगे कहते हैं कि इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के शिलालेखों में 'आ' और 'ओ' के पश्चात् आने वाले 'ज' का लोप होने पर शेष रहे 'अ' के 'य' में बदलने के कुछ उदाहरण मिलते हैं ।
अशोक से परवती ई. स. की चौथी शताब्दी तक के भारत के सभी क्षेत्रों में प्राप्त हो रहे शिलालेखों में मध्यवर्ती अल्पप्राण के लोप के बाद उद्वृत्त स्वर की 'य' श्रुति होने के कितने ही उदाहरण मिलते हैं और यथावत् उद्वृत्त स्वर भी मिलते हैं ।
. शिलालेखों में प्राप्त हो रहे 'य' श्रुति के उदाहरण इस प्रकार दिये जा सकते हैं - (अ) अशोक के शिलालेख
अनावुतिय (अनायुक्तिक)- धौली पृथक्, जौगड पृथक् । --उपय (-उपग)-धौली, कालसी, शाह., मान., गिर. । अधातिय (अर्धत्रिक)--लघु शिलालेख ।
कम्बोय (कम्बोज), रय (राजन्), समय (समाज)-शाहबाजगढं । (ब) खरोष्ठी शिलालेख
(i) सहयर (सहचर) K१४', महरय (महराज) K१३'-प्रथम शती ई. स. पूर्व
(ii) संवत्सरय (संवत्सरक) K३'-प्रथमशताब्दी ई. स. (iii) अव्यय 'च' का भी 'य' K८६३-द्वितीय शती ई.स.(K८६, - काबुल के पास वर्दक के कलशलेख (Vase Inscp.) से । (iv) महरय (महाराज) K१३', पूय (पूजा) KP, K८०4, K८८
(प्रथम शताब्दी ई. स. पूर्व से तृतीय शताब्दी ई. स. तक)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org