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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी २७. रखना) ई०स० के पश्चात् ही बल पकड़ती है और वह भी पूर्वीक्षेत्र में नहीं, परन्तु अन्य क्षेत्रों (उत्तर-पश्चिम, पश्चिम और दक्षिण) में : पायी जाती है जिसका विवरण इस प्रकार दिया जा सकता हैमध्यवर्ती व्यंजनों के लोप की प्रवृत्ति का प्रसार (i) य का ई०स० पूर्व तीसरी शताब्दी में उत्तर-पश्चिम से
अन्य जगह । (ii) व ई०स० पूर्व तीसरी शताब्दी में पश्चिम से अन्य जगह (iii) द का ई०स० पूर्व २५० में पश्चिम से अन्य जगह (iv) ज का ई० स० पूर्व दूसरी शताब्दी में पश्चिम से अन्य जगह (v) प का ई०स० पूर्व प्रथम शताब्दी में उत्तर-पश्चिम से
अन्य जगह । (vi) क का ई०स० प्रथम शताब्दी में पश्चिम, उत्तर-पश्चिम
और दक्षिण से अन्य जगह । (vii) च का ई० स० प्रथम शताब्दी में उत्तर-पश्चिम, दक्षिण
__ और मध्य क्षेत्र से अन्य जगह । (viii) त का ई०स० प्रथम शताब्दी में पश्चिम से अन्य जगह (ix) ग का ई०स० दूसरी शताब्दी मे उत्तर-पश्चिम से अन्य
जगह । मेहेण्डले ने अपने उपसंहारों में मध्यवर्ती ध और भ के स्थान पर ह बनने के बारे में कुछ भी नहीं कहा है (पृ० २७१-२७४)। मात्र धातु /भू का 'हो' बनना और तृतीय पुरुष ब० व० की गिभक्ति . भि का सर्वत्र –हि मिलना-इ-ही प्रवृत्तियों का उल्लेख किया गया हैं । अर्थात् अन्य स्थिति में मध्यवर्ती ध और भ का ह में परिवर्तन होने : का उल्लेख करने योग्य सामग्री नहा' है ।
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