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के. आर. चन्द्र
घोषीकरण की प्रवृत्ति स्पष्ट तौर से ई०स० के पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती है और वह भी पूर्वी क्षेत्र से ही अन्य क्षेत्रों में फैलती है. अर्थात् मागधी भाषा का जो प्रदेश माना जाता है वहीं से प्रारम्भ होती है और अन्य क्षेत्रों में फैलती है ।।
शिलालेखों में य श्रुति इस प्रकार मिलती है । क की : तीसरी शती ई०स० पूर्व पूर्वी क्षेत्र में
पहली शती ई०स० पूर्व पश्चिम में
दूसरी शती ई०स० पूर्व दक्षिण में ग की : (i) तीसरी शती ई०स० पूर्व पूर्व,पश्चिम, उत्तर-पश्चिम
(ii) प्रथम शताब्दी ई०स० से यह प्रवृत्ति बन्द। . च की : पहली शती ई०स० पूर्व उत्तर-पश्चिम में
पहली शती ई०स० मध्य क्षेत्र व दक्षिण में ज की : तीसरी शती ई०स० पूर्व उत्तर-पश्चिम में
दूसरी शती ई० स० पूर्व पश्चिम में त की : दूसरी शती ई०स० पूर्व मध्य क्षेत्र में
पहली शती ई०स० पूर्व पश्चिम में द की : दूसरी शती ई०स० पूर्व पश्चिम में
पहली शती ई० स० पूर्व मध्य क्षेत्र में
पहली शती ई०स० पूर्व दक्षिण में अर्थात् य श्रुति इस प्रकार मिलती है :(i) क,ग,ज की तीसरी शती ई०स० पूर्व से । (ii) त,द की दूसरी शती ई० स० पूर्व से ।
(iii) च की पहली शती ई०स० पूर्व से । मध्यवर्ती व्यंजनों के लोप की प्रवृत्ति (उद्वृत्त स्वर को यथावत्
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