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४. मध्यवती अल्पप्राण व्यंजनों का प्रायः लोप
वररुचि और हेमचन्द्र दोनों ही व्याकरणकार मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों के बारे में एकमत हैं । उनके सूत्रों के अनुसार क,ग, च,ज, त,द,प,य और व का प्रायः लोप होता है । वररुचि का सूत्र है--
कगचजतदपयवां प्रायो लोपः (२.२) । हेमचन्द्र का सूत्र है
कगचजतदपयवां प्रायो लुक (४.१.१७७) । इसके साथ-साथ प का प्रायः व भी होता है ऐसा सूत्र भी दोनों ने दिया है
पो वः (२.१५); वकारादेशो भवति-भामह । पो वः (८.१.२३१); पस्य प्रायो वा भवति-(हेमचन्द्र की वृत्ति)
शौरसेनी और मागधी में त और थ के लिए घोषीकरण का नियम दिया गया है
तकारस्य दकारो भवति, थस्य धो वा भवति । (हेम. सूत्र-८.४.२६०, २६७) ।
तथयौर्दधौ (वररुचि-१२.३)
वररुचि ने तो सामान्य प्राकृत में भी त का द होता है ऐसा नियम और उदाहरण भी दिये हैं जबकि हेमचन्द्र इसे सामान्य प्राकृत में मान्य नहीं रखते हैं ।
ऋत्वादिषु तो दः । (वररुचि-२.७) । हेमचन्द्र का मत है कि
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