________________
२. सामान्य प्राकृत भाषा में मध्यवर्ती त-द
सामान्य प्राकृत भाषा के अन्तर्गत वररुचि के 'प्राकृत प्रकाश (E.B. Cowell, में मध्यवर्ती त-द का उल्लेख तीन प्रकार से मिलता है ।
[१] नियम कोई अन्य है परन्तु उदाहरण के रूप में दिए गए शब्दों में त के स्थान पर द मिलता है ।
[२] कुछ शब्दों में त का द होता है ऐसा नियम दिया गया है ।
[३] विभक्ति और कृदन्त प्रत्ययों में त का द मिलता है परन्तु वर्तमानकाल के - ति, ते, आज्ञार्थ -तु, हेत्वर्थक -तुं और सम्बन्धक भूतकृदन्त -तूण के स्थान पर कहीं पर भी उदाहरणों में या नियम में त के स्थान पर द नहीं मिलता है । [१] उदाहरणो में
___ सूत्र-उदृत्वादिषु-१.२९ अर्थात् ऋ का उ होने के उदाहरणों में उद्, विउदं, संवुदं, णिव्वुदं (ऋतुः, विवृतम् , संवृतम् , निवृतम् )।
सूत्र-२.२-मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों के लोप के उदाहरणों में रअदं (रजतम्।।
सर्वनामों में सूत्र-६.२० -५० ए० व० की विभक्ति के उदाहरणएदाहि, एदादो, एदादु ।
सूत्र-६.२२-तदेतदोः सः साव नपुंसके –एदे, एदं ।
सूत्र--६.२६-युष्मद् के प्र० ए० व० के उदाहरणो' मेंतं आगदो, तुमं आगदो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org