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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी
समझाया जा सकता है । एक भाषा बहती हुई महानदी के पानी के समान है जो स्थल स्थल पर और समय समय पर परिवर्तनशील होता रहता है, जिसमें छोटी छोटी नदियों से विविध जगहों का पानी भी आता रहता है और उसका पानी कभी एक समान नहीं रहता है, बदलता रहता है, रंग भी बदलता है, अन्दर की सामग्री भी बदलती है और उसका स्वरूप बदलता रहता है । उसी बहते पानी में से एक नाले (चेनल) के द्वारा एक सरोवर के रूप में पानी एकत्रित करके उसे संस्कार युक्त बनाया जाता है और बाद में वह अपना रूप नहीं बदलता है परंतु अधिक सुन्दर, शुद्ध और मनोहर भी होता है । समय समय पर और स्थल स्थल पर ऐसे जो सरोवर बनाये जाते रहते हैं वे व्याकरण साहित्यकी भाषाएँ बनती रहती हैं जबकि बहता हुआ पानी प्राकृत के रूप में चलता रहता है, बदलता रहता है, विकास (evolution) करता रहता है ।
दोनों भाषाओं को समझाने के लिए एक दसरा दृष्टान्त इस प्रकार दिया जा सकता है । एक राष्ट्र ऐसा जहाँ पर राजकुमारी ही राज्य करती है । अनेक बहिनों में से एक का चुनाव होता है। चुनाव के नियम हमेशा एक समान नहीं रहते, परिस्थिति और स्थल के अनुसार समय समय पर बदलते रहते हैं । अनेक बहिनों में से एक रानी बनती है और उसके राज्य के सभी लोग यहाँ तक कि उसकी बहिने भी उसकी प्रजा (यानि her subjects) कहलाती है । इसका अर्थ यह नहीं कि सारी प्रजा और उसकी बहिने उस रानी की पुत्रियाँ हैं या सन्ताने हैं ।
जो पुत्री रानी बन गयी उसका रहन-सहन, पोशाक, खान
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