________________
...के. आर. चन्द्र
(ii) कालेण 1.1.0,31(2).32,14.52, संजमेण 1.16, तवेण 1.16.
अंतरेण 1.25, सीएण 1 27, फरसेण 1.27, प्रडिस्वेण 1.32, पत्तिएण 1.41, जेण 81; तेण 8 16, कुसग्गेण 9.44, संकप्पेण 9.49, धणेण 1417, . सयणेण -14 17, केण 14.22, माहणेण 14.38, अचिरेण 14.52, संजमेण 19.78, तवेण 1978, नाणेण 19 25, 22.26, चरणेण 19.95, दंसणेण 1995, तवेण 19.95,
अंकुसेण 22:46, (iii) परेहि 116 , पओसेहि 8.2, सबलेहि 19 55, पट्टिसेहि ___19.56, मुसलेहि 39.62, पसत्थेहि (गद्य) 29. 1109 (iv) अगारेसु 1.26, सव्वेसु 8.4, कामजाएसु 84, रक्खसेसु
8 18 , नारीसु 8.19, पासादेसु 9.7. भोगेसु 9.02, जंतुसु 14.42, कामेसु 14.45, तसेसु 19 90
(गद्यांश) तिरिच्छिएस 29.1104. . कामभोगेसु 29 1104, पवयणमायासु 29.1113, रसेसु 29.1166-68, फासेसु 28 1166.68
शा.
श्री जाल "शान्टीयर का सांस्करण, ई. स. १९२१-२२ ' पा. .. श्रीष्ठ देवचन्द्र लालभाई, सुरत द्वारा प्रकाशित. आचार्य श्री
शान्तिसूरिकृत. पाइयटीका. ई. स. १९१६-१७ ने. शेठ पुष्पचन्द्र खेमचन्द्र वणाद, गुजरात द्वारा प्रकाशित आचार्य
..." श्री नेमिचन्द्रसरि कृत 'उत्तराध्यन सूत्र की टीका ई. स १९४७ () दशवकालिकपत्र (म...वि.) के संपादन में उपयोग में ली गई प्रतियाँ खं १ श्री शांतिनाथ गेन ताडपत्रीय ज्ञान भडार, खभात, १३ वीं शती
का पूर्वाध' - ख २ श्री शांतिनाथ जैन तारपत्रीय ज्ञान भंडार, खंभात, १४ वी शती
का उत्तरार्ध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org