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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी
दशवैकालिक सूत्र
(i) afugem 3.2, उवट्टणाणि 3.5, आउस्सरणाणि 3.6, पगाणि 6.63, पवयाणि, वणाणि 7.26, तित्थाणि 7.37, एयाणि 8.16, मित्ताणि 8.37, आसणाणि 9.2.17, दुरुद्धराणि 9.3.7, महब्भयाणि 93.7, सव्वाणि 10.19.
11
(ii) तेण 15, अंकुसेण हत्थे, पारण 4.18.
5.2 49;6.20,25,
१०५
2.10, संजमेण 3.15, * तवेण 3.15,
नमोक्कारेण 5.1.124, नायपुरतेन
सीपण उसिणेण 6.62, एएण 7.13, अन्नेण 7.13 नामघेज्जेण 7.17, अनिलेण 10.3
(iii) सहि 6.22, बुद्धेहि 7.2
पण 6.37, तिविहेण 6.26,43;8.4,
:
(iv) महेसिणं 3.1, जीवनिकायाणं 4.10, भासाणं 7.1
(v) पुtha 12, अहागडेसु 1.4, भोगेसु 2.11, गिम्हेसु 3.12, हेमंते 3.12, देवलोगेसु 314, कंसेसु, कंसपाएसु, कुंडमोसु 6.50 भिलुगासु 661, गहणेसु 811, रसेसु 10,17
खं ४
अलग अलग हस्तप्रतों में उसी शब्द-रूप के लिए अनुस्वार सहित या अनुस्वार-रहित विभक्ति प्रत्ययों के प्रयोग
खं ३ : श्री शांतिनाथ जैन ताडपत्रीय ज्ञान भंडारे, ख भात, १४ वीं शती का उत्तरार्ध
श्री शांतिनाथ जेन ताडपत्रीय ज्ञानभंडार, ख भात, १४वीं शती का
उत्तराध
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जे.
श्री जिनभद्रसूरि पे ज्ञानभंडार, जेसलमेर, वि सं. १२८९ (ताडपत्र) शु. शुत्रिंग और डॉ. हायमेन का संस्करण
नपा.
संकेत अस्पष्ट
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