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'परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी (iii) वीरेहि 1.33. (iv) अणगाराणं 1.14, -5, 26,5:36. 44, 52,59; माणवाणं 1.64
67. 77, धूताण', दासीण, कम्मकरीणं 1,87, संसारपडि-. वण्णाणं 1 134, अणियहाामीण 1.143, वीक्षण' 1.143, आतो
वरताण' 1.146, आरूसियाण'- 1 256, इत्यादि । (v) रूवेसु 1.41, दिसासु.. 1.49; 103, 1.37, एतेसुः 189,
तेसु 1.92, सद्द-रूवेसु 1.108, पयासु. 1.119, उवरतदंडेसु
1.132, सोवधिएसु 1.132, इत्यादि । सूत्रकृतांग (i) उच्चावयाणि 11.1.27, सयणाणि 1.3.2.17. बीयाणि 1.3.4.3,
सद्दाणि 1 4.1 6, केसाणि 1.4.2.3, भूताणि 7.8: सवेदियाणि 8:17, सव्वाणि 9.36; महब्भयाणि 10.21 पाव
कम्माणि 15.6: अंताणि 15.15. (ii) परिताणेण 11.2.6, सुहुमेण 1.4 1 2, ईसरेण 1 1.3.6, मोहेण
1.3.1.11, कासवेण 1 3.2.14;15.21; मिच्छत्तेण 1.3,3.18, उदएण 1.3.2.4.1, उसीरेण 1.4.2.8, नाणेण 1.6.17, 18, वियडेण 1.7.21, केण 8.1, दुक्खेण 10.4, अण्णेण 10.6, सच्चेण 15:3
पु. १. मुनि श्री पुण्यविजयजी का संग्रह, वि. स. १७१४. पु. २. .
,, वि. सं. अंदाजन १६वीं शती ला. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद.
सं. जैन ज्ञान भंडार, संवेगी उपाश्रय, हाजा पटेल पोल, अहमदाबाद (ग) ऋषिभाषितानि (शुब्रिग), ला. द. भा. सं. वि. मन्दिर, अहमदाबाद,
ई. स. १९७४ प्र. प्रत्यान्तरे = P, H और D.
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