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________________ परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी . U . . गया है, उदाहरण . तेण 2.23, कालेण 6.1, घणेण 13.11, एएण 16.13. और एएणं 4.19, ..जंबुनामेणं, 6.19, रहस्सेणं 11.15, सयपोणं 16.6 3. तृ. ब. व. का. प्रचलित प्रत्यय -हिं पाया गया है । -हि के प्रयोग 10 प्रतिशत ही मिले हैं, उदाहरण -अम्हेहिं 58 चोरेहि 13.19, तेहि 13.8, एवं तेहि 4.30, लच्छीहि 7.6, दोहि 9.26 4. षष्ठी ब. व. काच्चालू. प्रत्यय -मां है, लगभग 15 प्रतिशत ..-ण. भी मिलता है। उदाहरण जणाणं 12.7, सहथवाहाणं 6-27, एवं गणिग्राण .11.8 और वोराण 16.21 5. सप्तमी ब. व. का सिर्फ -सु प्रत्यय ही पाया गया हैं, उदाहरण -सासेसु 3.47 अनीतेसु: 6.20, जगरेसु 155 और अमरेसु 17.8 पउमचरियं यह एक पद्यात्मक रचना है अतः छन्द में मात्राओं के नियमन के लिए अनुस्वार का आगम और लोप आवश्यक था । इस दृष्टि से इसके उद्देश 2, 3, 71 और 106 (398 गाथाओं) का विश्लेषण इस प्रकार है। 1. पु. नपु प्र. द्वि. ब. व. का प्रचलित प्रत्यय –आई है, पाद के अन्त में भी यह.प्रत्यय मिलता है । इस ग्रंथ में -आई ... 31 बार, -आई है. बारऔर -आणि 6 बार मिला है। उदाहरण -अणुब्वयाणि 2.86 दिवमाणि 3,677 अन्नाणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001436
Book TitleParamparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages162
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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