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अर्धमागधी में प्राचीन भाषाकीय तत्त्व
प्रत्यय : - सि,-सी; - इं, –ई; - त्या, - इत्था; - उ, – ऊ; - स्सं, - अंसु और इंसु । इनके लिए देखिए पिशल (515 - 518 ) । पालि साहित्य और अशोक के शिलालेखों से भी इन प्रत्ययों की प्राचीनता सिद्ध होती है । अर्धमागधी साहित्य से उदाहरण :
(1) अकासी ( आचा. 194314 ), रिक्कासि (आचा. 1.9.1.257अहेसि ( आचा. 1.9.1.298) ।
पकासी, णासी (इसिंभासियाई, 31 प्र. 69.10)
(2) अचारी ( आचा. 1.9.3.294 );
भुवि (इसिभा 31 63.2 इत्यादि से ] ।
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69.18 ) [ तुलना कीजिए सुत्तनिपात के अभिरमिं
( 3 ) ' इत्था' एक बहु प्रचलित प्रत्यय है ।
कुव्वित्था ( आचा. 194.321 ), एसित्था ( आचा. 318)
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(4) आहु (आहु:) आचा. सूत्र अभू (अभूत् ) उत्तरा (पिशल 516 ), अक्खू (आचा, सूत्र 88,151, 152 ) 1
140, सूत्रकृ. 1.2 17,20) अदक्खु, अदक्खू, अद्दक्खु,
(5) अकस्सिं ( आचा. सूत्र, 4, पिशल 516 ), पुच्छिरस' हं
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( सूत्रकृ. 1.5.1 )
( 6 ) आहंसु (सूत्रकृ. 1.4, 1.28), अभविंसु (सूत्रकृ. 1.15.25 ), हिंसिसु ( आचा. सूत्र 52,256,295 ), लूसिंस, णिवर्तिसु, विहरिसु ( आचा, सूत्र 295,297 ) ।
(थ) विधिलिंग के लिए प्राचीन प्रत्ययोंवाले प्रयोग
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- ज्ज, – ज्जा, – इज और इज्जा विधिलिंग के लिए प्राकृत के चालू . प्रत्यय हैं परंतु अर्धमागधी के प्राचीन अंशों में विधिलिंग के प्राचीन
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