________________
४८
हरिवंसपुराणु
[६] उठंत-सुराई वजंत-तुराई जुज्झंत सेण्णाइं रण-वह णिसण्णाई जयलच्छि-लुद्धाई उहय-कुल-लुखाई पहरण विहत्थाई जय-सिरि-समत्थाई कोवग्गि-दित्ताई रुहिरोह-सित्ताइ हम्मंत-दुरयाई णिवडंत-तुरयाई : मज्जंत-सयडाई जुझंत-सुहडाई णिग्गंत-अंताई भिज्जत-गत्ताई लोटुंत-चिंधाई तुटुंत-छत्ताई बेयाल-भूयाइ विसयाण भूयाई (१) अण्णोण्ण-दुव्वार मुक्केक्क-हुंकार पहरांति पाइक णिग्गंत-मस्थिक्क जज्जरिय-उर-वाह विविखण्ण-सण्णाह
घत्ता
कत्थइ गय-जुज्झे दसण-कसग्गि समुट्टियउ । दीसइ घण-मज्झे विज्जु-विलासु णाइ ठियउ ॥ १४
[७] दारुणहं रणहं एवंगयइ छच्चालइ जाव तिणि सयई तो ससर-सरासण-पसर-करु जरसंध-बंधु दुद्धरिस-धरु परिभमइ महाहवे एक-रहु थिउ रासिहे गावइ कूर-गहु उत्थरइ फुरइ पहरणई जहिं दुग्धोट्ट-थट्ट फुट्ट ति तहिं रह कडयडंति मोडंति धय छत्तई पडंति विहडंति हय णिय-वलु संभासेवि एक्कु जणु सामरिसु स-संदणु स-सर-धणु तहो एंतहो जर-कुमार भिडिउ णं गयहो गइंदु समावडिउ ते वे-वि वलुद्धर दुद्धरिस पारद्ध-जुज्झ वद्धामरिस
घत्ता विधतेहिं तेहिं वाण-णिरंतर गयणु किउ । स-भुवंगमु सव्वु उपएरे णं पायालु थिउ ॥
९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org