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हरिवंसपुराणु
घत्ता जगणा-दहे एक्कु मुहुन्त केस सलिल-कील करइ । रयणायरे मंदरु णाई विसहर-वेढिउ संचरइ ॥
[३] णिय-कतिए असुर-परायणेण कालिउ ण दिठु णारायणेण उप्पण्ण मंति णउ णाउ गाउ विप्फुरिउ ताम फणि-मणि-णिहाउ उज्जोएं जाणिउ परम-चारु को गुणेहिं ण पाविउ बंधणारु तो समर-सहासहि दुम्महेण भुयदंड पसारिय महुमहेण पंचंगुलि पंच-णहुज्जलंग णं फुरिय-फणामणि वर-भुअंग तहो तेहिं धरिज्जइ फण-कडप्पु णउ णावइ को करु कवणु सप्षु लक्खिज्जइ णवर विणिग्गमेण उज्जलउ लइउ सिरि-संगमेण विहडप्फड फुड फड-झडउ देइ गारुडियहो विसहरु किं करेइ ८
घत्ता
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जत्थेप्पिणु महुमहणेण कालिउ णहयले भामियउ । भीसावणु कंसहो णाई काल-दंडु उग्गामियउ ॥
[४] मणि-किरण-करालिय-महिहरेहि विसहर-सिर-सिहर-सिलायलेहिं णिय-वत्थई कियई समुज्जलाई पिंजरियई जउण-महाजलाई तहिं हाउ गाउ णं गिल्ल-गंडु पुणु तोडिउ कंचण-कमल-संडु विणिवद्धउ भारुप्परि विहाइ वोयउ गोवद्धणु धरिउ णाई णीसरिउ जणणु दणु-विमदि महणे समत्तए मंदरहि तडि-भारु पडिच्छिउ हलहरेण __णं विज्जु-पुंजु सिय-जलहरेण गो-दुहहुं समप्पेवि आयरेण सब्भावें भायरु भायरेण
घता वलएवे अहिमुहु एंतु हरि अवरुंडिउ तहिं समए । सिय-पक्खे तामस-पक्खु णाई पहंतरे पडिवए ॥
घर
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