SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छट्ठो संधि [५] दामोयरु हलहरु जायवा-वि गय गंदहो गोउलु पेक्खया-वि गो-दुहेहि ताम णेवावियाई महुराहिव-घरे घल्लावियाई णरणाहे दिट्ठई पंकयाई णं पुंजीकयई महा-भयाई विक्खिण्णइं अण्णइं पविरलाई णं णह-सिरि-पयई सुकोमलाई ४ रिउ दुज्जउ एत्थु ण का-वि भंति । मई मारइ देव-वि णउ धरंति चितेवउ तासु उवाउ तोवि जइ ढुक्केवि सक्कइ कह-वि को-वि अच्छइ हियवए दुक्खंतु सल्लु तं फेडइ जइ पर एत्थु मल्लु जसु तइउ चलणु तियसहुं असज्झु जे दिठे णासइ सो अवज्झु ८ घत्ता हकारेवि तो चाणूरु अवरु धणुद्धरु मुट्ठियउ । लक्खिज्जइ राहु-णिसण्णु धूमकेउ णं आहे ठियउ ॥ [६] तो महुरापर-परमेसरेण वोल्लाविय वे-वि कियायरेण परिपालहो जइ जाणहो कयाइ जइ पहु-पसाय-रिणु हियए थाइ तो वयणु महारउ करहो अज्जु मा तुम्हेहिं हुंतेहिं हरउ रज्जु बलवंतउ दीसइ णंद-जाउ । अण्णु-वि सीराउहु तहो सहाउ ४ तो पई पहणेवट मुट्टिएण वलएउ वलुद्धरु मुट्टिएण धुर धरिय तेहिं रणे दुद्धराह हक्कारा गय हरि-हलहराई संचल्लिय बल्लव वल-महल्ल दणु-दुप्परियल्लेक्केक्क-मल्ल वड-मालालंकिय-उत्तमंग भू-भूसिय-भूरि-भुआ-भुअंग ८ घत्ता णिसुणिज्जइ महुरहिं तूरु गोवेहि रहसुद्धाइएहिं । णं कंसहो धरे कूवारु हरि-वलएवेहिं आइएहि ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy