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हरिवंसपुराणु [१३] कंसहो कन्जु परिटिउ भारिउ सझसु मणे उप्पण्णु णिरारिउ कहिय वेट्ठि गोठेंगण-णाहहो जउणा-वालाहियहो अगाहहो णंद-गोव लहु कमलई आणहि णं तो चिंति कज्जु जं जाणहि तहिं अवसरे परिवढिय-सोयहे णिवडिउ गं सिरे वाजु जसोयहे ४ एक्कु पुत्तु महु अब्भुधरणउ
तासु वि कंसु समिच्छइ मरणउं होंतु मणोरहु महुरा रायहो वरि अप्पाणु समप्पिउ णायहो मई जीवंतिए काई हयासए भूमिहे भारए सिल-संकासए अहवइ जइ गउ गंदु स-णंदणु तो महु धुउ अपुत्त-रंडत्तणु
घत्ता कालिउ कालउ काल-समु मई खाउ जामि तहो पासु । लग्गउ तडे बोहित्थडउ म सव्वहो होउ विणासु ॥
[१४] तो वल्लइ-जण-णयणाणंदे
णिय पिययम मंभीसिय गंदे धीरीहोहि कते किं रोवहि मा णिकारणे अप्पडं सोहि वरि परिरक्खणु करि गोविंदहो उहु गउ हउं तहो पासु फणिदहो ... जिम थेरासण-भारु पराणिउ जेम समउ तिम सो संमाणिउ ४ एम भणेवि पर देइ ण जामहिं महुमहणेण णिवारिउ तामहिं अच्छहि ताय ताय णिच्चितउ उहु भरु मह खंघोवरि धित्तर जे थिय वाल महा-गह खीलेवि पृयण धरिय जेहिं आवीलेवि ८ वायस-चंचु जेहिं रणे तोडिय णिहउ रिठ्ठ जमलज्जुण मोडिय
धत्ता ... गिरि गोवद्धणु उद्धरिउ सत्ताहउ जेहिं पयंडेहिं ।
पेक्खु भुयंगमु णत्थियउ धुवु तेहिं सयं भुव-दंडेहिं ॥ १०
इय रिट्रणेमिचरिए धवलइयासिया सयंभुएव-कए । गोविंद-बाल-कीला णायवो पंचमो सग्गो ॥ .
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