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'पंचमो संधि
तो अवहित् करेवि संखेवे वासह - वसहउ भणेवि पगासिउ अंचेवि पुजेबि वंदेवि गोवइ - महराहिउ तहि काले थुडुक्किउ णट्ठ जसोय कहि-मि हरि लोप्पिणु हि-मि दुवालिए विणु ण पवत्तइ हेरेवि चरेहिं कहिज्जइ कंसहो -का-वि अपुव्व भंगि तहो केरी
महुरापुर - परमे सरहो हरि-बल-गुण- करवत्तपहिं
दुज्जस-मसि-मलिय णिय-वंसें विजारेण सुकित्तण- णामें मेरु-महीहर- णिच्चल-चित्तें रहणेउरणयरहो पट्ठवियई तहिं जो णाग-सेज्ज आयामह अद्ध-रज्जु तो देमि णिरुत्तउ तो सेज्जहिं विवष्णु गरुडासणु
वामए करे सारंगु किउ विसहर - सेज्ज समारुहे वि
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खीर-हडेण सितु वलएवें जिह भर होइ ण कंसहो पासिउ गय णिय-भवणु पडीवी देवइ पेक्खह (१) वालु भणंतु पक्किउ ४ पाणिग्गहण - पघोसु करेपिणु सिल-संघाउ सिलोवरि घत्तइ सच्चउ होइ णाहु हरि - वंसहो दुक्करु छुट्टई वसुमइ तेरी
घन्त्ता
भउ वड्ढइ धीरु ण थाइ । कपिज्जइ हियवरं णाई ||
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घोसण पुरे देवाविय कंसें णिज्जिय - णिरवसेस - संगामें
घता
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दाहिणेण संखु मुद्दे ढोइयउ । रिउ णाई कयंतें जोइयउ ॥
सच्चहाम-वरइत- णिमितें रयणइं तिण्णि एत्थु चिरु ठवियई ४ पूरइ पंचयण्णु धणु णामइ इय-गय- रयण - दुहिय-संजुत्तउ पूरिउ संखु चडिण्णु सरासणु
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