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________________ RC सत्तमर जु णंदणु ओयरिड तहिं काले जसोय-वि देवइ-वि अवरुप्पर वद्धिउ णेह - भरु -महु केरउ गब्भु माए मरउ परिपालमि तं जिह अप्पणउं णिय- णिय - आवासी हूइयउ भद्दवयहो चंदिणे उप्पण्णु जणद्दणु -सय-सीह-परक्कमु अतुल-वलु सुह- लक्खण- लकखालंकियउ रणिय - कंति-लयालिंगिय-भवणु वलवे आयत्तु धरिउ नारायण - चलणंगुट्ट-हउं धम्मो अग्गए बसहु थिउ हरि देपिणु लइय जसोय-सुय - गोत्रंगय कंसहो अल्लविय - गोविंदु णंद-गोहंगणए हरिवंसही मंडणु यि पक्ख विहूसणु वारहमए दि असुर - विमद्दणु - Jain Education International -गोटुंगणे पुण्णई आइयई गोगणें परिवड्ढइ हरिसु घरे णाई मणोरहु पइसरिउ णं मिलिय जडण- गंगा - णइ-वि तो दो दइयए दिष्णु वरु तुह केरउ गोउले संचर उ एन्ति पडिवण्णु महु त्तणउं वासरे एक्कहिं जे पसूइयउ घत्ता [१२] हरिवंशपुराणु सिरि-लंछण-लंछिय वच्छयलु अट्टुत्तरस्य णामंकियउ वसुवे चालिङ महुमहणु ते वरिषु निरंतर अंतरि विहडेवि पओलि - कवाडु गउ ते जडणा-जलु वे-भाउ किउ हरहर - वसुएव कयत्थ किय विझाहिव - जक्खेहि विंझे णिय वड्ढइ णव-ससि व हंगणए घत्ता कंसह खंडणु पर - गइ - दूसणु [१३] सुहिहि दिंतु अहिमाण- सिंह | कंसहो मत्था - सुलु जिह ॥ ४ महुरहिं दुणिमित्तई जाइयई महुरहिं रिसइ सोणिय - वरिसु For Private & Personal Use Only ८ हरि पश्विड्ढइ णंद घरे । रायहं णं कमल - सरे ॥ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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