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थो संवि
जं कंसु परिद्विड पणय - सिरु
तं देवइ-दहवें दिष्णु वरु
सिल सिहरे
महुरा हिउ स - रहसु विष्णवइ सो सो - वि हणेव गउ एम भणेपिणु लद्ध-वरु णं विमणु महा-कणि फण- रहिउ देव हे तणुब्भव गीढ-भय
पडिआगय- चेयण जिह तिह कुलउत्तिए
[९]
रइयंजलि थग्गण्ण-गिरु पई मुवि अस्थि को महु अवरु जो जो देवइहे गब्भु हवइ तुम्हेहिं णिवसेवउ महु जे घरे वसुएड-वि गड णिय- वासहरु णिय-वइयरु णिरवसेसु कहिउ रोति रसायले मुच्छ गय
घन्ता
भइ स-वेयण णिच्चल हरणइ थुणियए काई जियंतिए पइ-हरे पुन्त - विहूणियए ।। ८.
सचमउ तुहारउ महि-हि-रयण
धणणंदण - जोठवणइन्तियह सो किं ण देइ सय-वार वरु एक्कु - वि लहु अणु-त्रि सुय-रहिय तो गयई वे - वि उज्जाण - वणु वंदेष्पिणु पुच्छिउ जइ-पवरु जो गब्युपज्जइ महु उवरे परमेसरु सब्झसु अवहरइ छचरम देह कहियागमणे
[१०]
जसु सत्त-सयइं कुल उत्तियहं हय- दइवहे महु उज्झउ उयरु वरि लइय दिक्ख जिणवर - कहिय अइमुत्त-महारिसि जहिं सवणु वसुएवें कंसहो दिण्णु वरु तं सो अप्फालइ सिल- सिहरे तुह पुत्तहो एक्कु - वि णउ मरइ पालेवा देवे
इगमणे'
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वंदेपणु देव - रिसिहे चलण छ - वि पसविय कंसहो अल्लविय
घन्त्ता
रणे खयगार
पट्ट - णिबंध
महुराहिव - मगहा हिवहं । होसइ पत्थि पत्थिव ।। ९
[११]
गय देवइ णिय- घरु तुट्ठ मण मलयइरिहे णइगम-सुरेण णिय
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