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चउत्थो संधि
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महुराउरि परिपालंतु थिउ णिय-वस-विहेउ पडिवक्खु किउ जरसंघहो जो ग सेव करइ उक्खंधे जाएवि तं धरइ 'परिचितइ बारह मंडलई चउरासम चाउवण्ण-फलई चउ विज्जउ सत्तिउ तिण्णि तहिं अट्ठारह-तित्थई कवणु कहिं सत्तंगु रज्जु पालइ अचलु मेल्लावइ छव्विहु भिच्च-वलु छग्गुण सयलु-वि संभरइ सत्त-वि दुव्वसणइं परिहरइ जाणइ कंटय-सोहण-करणु णिय रक्खण णिय-कुमार-धरणु हिय-इच्छिउ एम रज्जु करइ निय-गुरु-उवयारु ण वीसरइ ८
घत्ता कुरु-वंसुप्पण्णी सस-पडिवण्णी देवइ णिय-समाण गणेवि । दिज्जइ वसुएवो जिण-पय-सेवही कसें गुरु-दक्खिज भणेवि ॥९
[६] तहिं तेहए काले ति-णाण-धरु विणिवारिय-वम्मह-सर-पसरु अजरामर-पुरवर-पह-दरिसि अइमुत्तउ णामें देव-रिसि रयणायरु गुरु-गंभीरिमए गिव्वाण-धराधरु धीरिमए तव-तेएं तवण-ताव-तवणु
णिय-मूल-गुणालंकरिय-तणु परमागम-दिट्ठिए संचर
महुराउरि चरियए पइसरइ आणंद-पद्ध-रममाणियउ
जीवंजस-देवइ-राणियउ णिय-णाण-बिणासिय-भव-णिसिहे। पहु रुंभेवि ठंति महा-रिसिहे ता तेण-वि मणे आरुट्टएण वोल्लिज्जइ कंसहो जेट्टएण ८
पत्ता जीवंजसे वच्चहि काई पणच्चहि जहिं भउ तहिं मग्गाह सरणु । मगहाहिव-वंसह पुर-सर-हंसह आयहो पासिउ धुउ मरणु ॥ ९
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