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हरिवंशपुराणु
पत्ता आयामेवि कसे लद्ध-पसंसे छिदेवि सर-पसरे लद्धावसरे
छत्तु स-चिंधु स-सीह रहु । धरिउ रणंगणे सीहरहु ॥ ९
रिउ लेवि वे-वि गय तं जि गिहु आखडल-मंडल-णयर-णिहु जरसंघे तो आलत्तु पिउ
वसुएवहो अब्मुत्थाणु किउ जीवंजस देसु समपियउ । ता रोहिणि-णाहु पयंपियउ मई जिउ ण भडारी सीहरहु जिउ कसें आयहो देहि बहु ४ परि पुच्छिउ तें तुहुं तणउं कहो कउसंविहिं हर वज्जरिउ तहो रंजोयरि णामे माय महु
सुर-कारिणि कोक्किय आय लहु कर-कमल-कयंजलि विण्णवइ अहो सुणु तिखंड-वसुहाहिवइ एहु सच्चउ सुउ ण महु त्तणउं गड जाणमि आउ कहि त्तणउ.
पत्ता कंमिय-मंजूसए मुद्द-विहूसए केण वि जले पइसारियउ । कालिंदि-पवाहे सुद्छु अ-गाहे आणे-वि महु संचारियउ ॥ ९
[४] कंसिय-मंजूसए जेण भवणु किउ कंसु तेण णाम-ग्गहणु फलियारउ मई ण णिरिक्खिउ गुरु सेवेवि सत्थई सिक्खियउ परिओसु पवड्ढिउ पत्थिवहो जीवंजस णिय-सुय दिण्ण तहो लइ मंडलु एक्कु जहिच्छियउं तं तेण वि वयणु पडिच्छियउं परमेसर दिज्जउ महुर महु जें जुज्झमि णिय जणणेण सहुं जउण-इहे घल्लिउ जेण चिरु तं वंधमि जइवि ण लेमि सिरु ता राएं हत्थुत्थल्लियउ पिउ बंधेवि णियलेहिं घल्लियउ
घत्ता
जा बण्णे भुत्ती सिय-कुलउत्ती सा किम पुत्तहो परिणवइ । , सिय चंचल-चित्ती होइ विचित्ती जुत्ताजुत्तु ण परिकलइ ॥ ८
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