________________
तईओ संधि
[१३] तं णिसुणेवि बयणु जोत्तारहो धाइउ जायव-णाहु कुमारहो विण्णि-वि भिडिय रणंगणे दुज्जय दुद्धर-पर-पर-पवर-पुरंजय विष्णि-वि जायव गरुड-महद्धय आसि सुहाएवि-थगंधय विणि -वि अंधयविहिहे गंदण णिय-णिय-सारहि-वाहिय-संदण ४ विण्णि-वि रण-मण-वइरि-वियारण जिण-णारायण-जम्मण-कारण विण्णि-वि संजुगीण-धणु-करयल भग्गालाण-खंभ णं मयगल विणि-वि जयसिरि-रामालिंगिय सासय-पुरवर-गमण-मणिगिय विणि-वि विकम-वद्धिय-जय-जस दाणे माणे समरंगणे स-रहस ८
सउरीपुरि-परमेसरु बाहिय-रहवरु पच्चारिउ वसुएवें । पहरु पहरु णव वारउ तुहं पहिलारउ अच्छहि किं स(१)वलेवें ॥ ९
[१४] ताव सुहहंगरुह-पहाणे मुक्कु वाणु वइसाह-ट्ठाणे 'किउ दु-खंडु दूरहो जे कुमारे णं फणि खगवइ-चंचु-पहारे जुज्झिय एम सरेहिं अणेयहिं पायव-वारुणत्थ-अग्गेयहिं तरुवर-गिरिवर-सिल-पाहाणेहिं ___सय-सहास-जुव-लक्ख-पमाणेहिं ४ पुणु वम्हत्थु विसज्जिउ राएं णासिउ तमि-तामस-णाराएं जं पट्टवइ तेण तं छिज्जइ तिह पहरइ जिह भाइ ण भिज्जइ मंडेवि वड्ड वार समरंगणु परिओसाविउ अमर-वरंगणु णिय-णामंकिउ मुक्कु महा-सरु पणवइ पइ वसुएउ सहोयरु
घत्ता
अंधकविट्ठिहे गंदणु णयणाणंदणु दहहं मन्झे लहुयारस । कह-वि कह-वि विच्छोइउ दइवें ढोइउ हउं सो भाइ तुहारउ ॥९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org