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हरिवंशपुराणु, [११] पाडिउ जे जे सत्तुंजउ
धाइउ दंतक्तु रणे दुजइ सो-वि सिलीमुहेहिं विणिवारिउ मुच्छ पराणिउ कह-वि ण मारिउ धाइउ कालवत्तु तहो वीयर सो-वि दुक्खु मरि(१)-रक्खिय-जीयउ सल्लु स-सल्लु करेप्पिणु मुक्कउ कह-वि कह-वि जम-णयरु ण ढुक्कउ ४ सोमयत्तु वित्थारेवि घल्लिउ भूरीसउ णिय-रहे ओणलिउ तिह गंगेउ दोणु कियवम्मउ तिह किउ तिह कलिंगु स-सुसम्मउ जो जो जोहु रणंगणे मुप्पइ सो सो सउरिहे को-वि ण पहुप्पइ ताव समुद्दविजउ वले भग्गए सहुँ णिय-रहबरेण थिउ अग्गए ८
पत्ता णिएवि जणेरी-गंदणु वाहिय-संदणु अणुउ मणेण पहिउ । अन्जु दिवसु दिहि-गारउ भाइ महारउ वरिस-सएहिं जं दिट्टउ॥ ९
[१२] सारहि दिण्णु आसि जो मामें सो वोल्लाविउ दहिमुहु णामें मंथरु वाहि वाहि रहु तेत्तहे जेटु समुद्दविजउ महु जेतहे केम-वि विहि-वसेण विच्छोइउ वरिस-सयहो णिय-पुण्णेहि ढोइल हउँ हिरवेक्खु ण आएं सहियउ एउ परमत्थु मित्त मई कहियउ ४ जणण-समाणु केम घाइज्जइ आयहो छाया-भंगु ण किज्जइ जिह उवइठ्ठ तेम रहु चोइउ जायव-णाहु जेत्थु तहिं ढोइल तेण-वि दिछु कुमारू सहोयरु सारहि वुत्तु ताम धरि रहवरु पेक्खु जुर्वाणु सरासण-हत्थउ णं वसुएव-सामि सग्गत्थउ
घत्ता तो रण-रसि-हूएं वुच्चइ सूएं सामिसाल अनचिंतए ।
भिच्चु जेम पहरेव्वउ जिम मरिएल्वउ एत्थु काई सुह-चिंतए ॥९ 11.7 भा.ज. मुच्चइ.
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