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________________ ૧૮ विहि-मि हिरण्णणाह-वसुएवेहिं बाहिय-रहेहिं अखंचिय-वग्गेहिं सुर-वेखंड- सुंड-भुय- दंडेहिं विसहर जोह - दोहणारा पहि छोइउ पर-वलु सरवर - जाले ' सोण जोहु णारोहु ण गयवरु सो ण वि आसवारु ण तुरंगमु तं ण-वि आयवन्तु ण-वि चिंधडं - तहि अवसरे समरंगणे सुंडे' उइड हिरण्णणाहु बहु वाणेहि रुहिरहो णंदणेण धणु - हत्थे चहिं चयारि तुरंगम घाइय अवरे आयवतु धर अवरें जाम पर्यडु अवरु सरु संघइ नाम विरुद्धएण वसुएवें घन्ता तहो पडिवकखे वायड मुक्कु सलक्खे' सरेहिं दसहिं विक्खिण्णउं णं परिछिण्णउं [८] जरसंघहो किंकरेण पयंडे दूसह - दिणयर-किरण- समाणेहिं छिण्णु महारहु एक्के सत्थे वइवस - पुरवर-पंथें लाइय अवरें वाण-जालु धत्त अवरें नागवासु जगु जेण णिबंधइ पेसिउ अद्धचंदु विणु खेवें तेण सरासy afte हियत (१) पहीणहो Jain Education International [ ७ ] रण- र सियहि वड्ढिय - अवलेवेहिं गंध बहुद्धअ-धवल-धयग्गेहिं इंदा उह-पथंड - कोदंडेहि मेहसमुद्द- २०६ - णिणाए हिं णं गिरि-कुलु णव- पाउस - काले तं ण रहंगु रहिउ णउ रहवरु सो ण णशहिउ जय - सिरि-संगमु जं वसुएव - सरेहिं ण विद्धउं हरिवंशपुराणु घन्ता . तेण वि रणे माहिदे | भव-संसारु जिणिदे ॥ ९ For Private & Personal Use Only ४ ८ पाउ कोडि-गुणालंकारिउ । लक्खण- हीणहो णं धणु दइवें हरिय ||९ www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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