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तईओ संधि
[५] परिणित को कलत्तु उहालइ को इंदहो इंदत्तणु टालइ को फणिवइहे फणा मणि तोडइ वइवस-महिस-सिंगु को मोडइ तुम्हई विण्णि-वि रोहिणि रक्खही हउं अभिडमि एक्कु पडिवक्खहो वइरिहिं थरहरंत सर लामि उद्ध-कवंध-णिवहु णच्चावमि ४ गज्जिउ जं वसुएव-कुमारे दिण्णु महारहु सहु जोत्तारें दुइ सहास संदणहं रउद्दहं छग्गंधुदुर-मत्त-गइंदहं हयह चउद्दह दप्पुत्तालहं धाइय तिाण लक्ख पायालहं भिडियई वलई वे-वि अवरोप्परु रउ उच्छालउ भरंतु दियंतरु
पत्ता मत्त-मयंग मयंगहुं तुरय तुरंगहुं रहवर रहवर-विदहुं । जोहहुं जोह महारणे रोहिणि-कारणे भिडिय गरिद गरिंदडं ॥ ९
उत्थरंति साहणाई
चाउरंग-वाहणाई सुठु-वद्ध-मच्छराई
तोसियामरच्छाई एक्कमेक्क-कोक्किराई कुत-कोडि-वोक्किराई वाण-जाल-छाइयाई
तूर-णाय-णाइयाइ धूलि-वाउ-धूसराई
आउहोह-जज्जराई दंति-दंत-पेल्लियाई
सोणियंव-रेल्लियाई घोर-घाय-भिभलाई
णित्त-अंत-चोभलाई तिक्ख-खग्ग-खंडियाई भल्लुया-रवाउलाई
घोर-गिद्ध-संकुलाइ सीह-विक्कमें विवक्खे हीयमाणए स-पक्खें
घत्ता तहिं अवसरे वाहिय-रहु मरण-मणोरहु सउरि स-सालउ थवाइ । दूसहु एक्कु हुवासणु अवरु पहंजणु वे वि धरेवि को सका ॥९
पजा-२
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