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हरिवंशपुराणु
[३] पंथिय-पडह-सदुदु सुउ कण्णए आउ आउ णं कोक्कइ सण्णए आउ आउ वरु एत्तहिं अच्छइ आउ आउ इह माल पडिच्छइ आउ आउ एहु सव्वहं चंगउ सब्बाहरण-विहूसिय-अंगउ आउ आउ एहु णिरुवम-देहउ आउ आउ एहु वम्महु जेहउ आउ आउ कि अच्छहि दूरे एव णाई हक्कारिय तूरे वंचेवि दियवर वणिवर खत्तिय पाडहियहो माला वरि घत्तिय जे जे मिलिय सयंवरे राणा ते ते सयल-वि थिय विदाणा जणु जंपइ तहो सिय आवग्गी रोहिणि जसु कर-पल्लवे लग्गी
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वुच्चइ तो मज्झत्थे सुरवर-सत्थे एह ण जुज्जइ सयलहो । .. चिर चंदायणे चिण्णहो णं परिखिण्णहो जिह रोहिणि तिह सयलहो ।
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सण्णिय णिय-णरिंद जरसंधे रयणई संभवंति महिवालहो जइ ण देइ तो जम-पहे लावहो णं जम-किंकर माणुस-वेसे सुर णिरुद्ध णं केण-वि असुरें सिहरे महीहरेण णं पायउ थिउ दप्पुब्भड-भड-कडवंदणे वुच्चइ लोहियक्खु जमाएं
तो आढत्त महा-पडिबंधे पाडहियहो कुमारि उद्दालहो रुहिर-हिरण्णणाह वोल्लावहो धावइ गरबर पहु-आएसे तहिं अवसरे वसुएवहो ससुरें रहि अप्पणई चडाइउ जायउ तेण णिरूवेवि तणयहो संदणे तो पसरिय रण-रहसणुराएं
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. घत्ता रहु स सरासणु दिज्जउ एत्तिउ किज्जउ पई ण माम लज्जावमि । - एंतु एंतु अरि उप्परि हउँ णर-केसरी हरिण जेम उड्डावमि ॥९
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