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________________ नईओ संधि तईओ संधि रोहिणि-कर-घरमाणा सयल-वि राणा मिलिया सहुं जरसंधे। णं दस-दिसिहि पसत्ता महुयर मत्ता कढिय केयइ-गंधे ॥१॥ [१] णिग्गय रोहिणि जय-जय-सहे गहिय-पसारण जुठवण-गव्वे सव्वाहरण-विहूसिय-देही कंति-सम्मुज्जल विज्जुल जेही मोहण-वेल्लि व मोहण-लीला वम्मह-भल्लि व विंधण-सोला ताराएवि व थाणहो चुक्की तक्खय-दिहि व सव्वहो दुक्की ४ जं जं जोयइ तं तं मारइ सो ण अस्थि जो मणु साहारइ सो ण अस्थि जो मुच्छ ण पत्तउ सो ण अस्थि जो णउ संतत्तउ सो ण अस्थि जसु हियइ पइट्ठो सो ण अस्थि सा जेण ण दिट्ठी मोहिउ हरिण-भिवहु गं गोरिए सयलु लोउ मूसिउ मण-चोरिए ८ पत्ता णिय-सामिणि-अणुलग्गी करिणि-वल्लगी धाइ णराहिव दावइ । आयहं माझे असेसह उज्जल-क्सहं लइ जुवाणु जो भावइ ॥९ [२] जोयइ वाल धाइ दरिसावह एक्क-वि णवइ मणहो ण भावइ वंचिय कंाचण-मंच मयंधहं किव-गंगेय-दोण-जरसंघहं वंचिय इंद-पडिंद-सुरीस क विष्णि-वि सोमयत्त-भूरीसव चंचिय विम-पंडु-धयरतु-वि केरल-कोसळ-जवणंधट्ट-वि वंचिय भोट्ट-जट्ट-जालंधर टक्काहीर-कीर-खस-बव्वर गुज्जर-लाड-गउड-गंधार-वि सिंधव-मह-सुरह-दसार-वि वंचिय उग्गसेण-महसण-वि देवसेण-सुरसेण-सुसेण-वि चंभण-इब्भ ते-वि ण-वि जोइय जहिं तुरई तहिं करिणिय चोइय ८ घत्ता तिहिं बज-अम्भिारे जो जो अंतरे सो सो को-विण भावइ । सबणिदियह सुहावउ गं परिणावउ पडह-सह परिभावइ ।। ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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