________________
१३
हरिवंशपुराणु
[८]
कुसुमाउह-सरेहिं सरीरु भिण्णु वसुए- मोहणु णाई दिण्णु । विवणम्मण एक्कु-वि पउण जाइ उरि वाहें विद्धी हरिणि णाई लोयणई णिवद्धई लोयणेहिं सव्वंगई अंग-णिवंधणेहि चित्तेण चित्तु णिच्चलु णिरुद्ध जीवग्गह-गुत्तिहिं णाई छुद्ध ४ वणि-तणयए मयण-परव्वसाए घत्तिय णयणुप्पल-माल ताए परिणिज्जइ हरि-कुल-गंदणेण तरुणीयण-घण-थण-महणेण रइ-रस-वस इय अच्छंति जाम फग्गुण-गंदीसरु ढुक्कु ताम सुर-गर-विज्जाहर मिलिय तेत्थु सिरि-बासुपुज्ज-जिण-जत्त जेत्थु ८
घत्ता ताइ-मि तित्थु गयाइं स-विलासई रहवरे चडियाई । ' छुडु छुडु विण्णि-वि णाई सइ-सुरवइ सग्गहो पडियाई ॥ ९ ।
[९1 जिण-भवणहो वाहिरे ताम कण्ण मायंगिणि ण(१ ज)च्च-सुवण्ण-वण्ण कम-कमल-कंति-जिय-कमल सोह लायण्ण-जलाऊरिय-दिसोह मुह-ससि-धवलिय-गयणावयास सिर-केस-कंति-कसणीकयास सहुँ कुंतवे(?) उच्चिल्लंति दिट्ठ णं काम-भल्लि हियवए पइट्ट ४ वसुएव-दिट्ठि अण्णहिं ण जाइ णिय-घरु मुएवि कुलवहुय णाई पिय मयण-परव्वस कुइय कंत चल पुरिस होति अविवेयवंत ण मुणंति महिल-महिलंतराय रहु सारहि सारहि धरिउ काई तो पेल्लिय सूएं वर तुरंग णं मारुएण जलणिहि-तरंग
घत्ता वणि-तणयए करे लेबि पइसारिउ जोइउ जिण-भवणु(१) । देव-वि हियए ण ठंति मायंगिणि झायइ णिय-मणहो ॥ ९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org