________________
बिईमो संधि
[६ जिण-णाहु णवेप्पिणु ण किउ खेउ तहिं को-वि पुच्छिउ भूमि-देउ अहो दियवर जणवउ कवणु एहु किं-णामु णयरु पंडुरिय-गेहु आयासहो किं तुहं पडिउ वप्प जंण मुणहि लोए पसिद्ध चंप जहि णिवसइ णिरुवम रिद्धि-पत्त वणि-गंदणु णामें चारुदत्तु तहो तणिय तणय गंधव्वसेण परिणिज्जइ जिज्जई अज्जु जेण आलावणि-वज्जे मणहरेण तो सउरोपुर-परमेसरेण अप्पाणु पयासिउ तेण तेत्थु मिलियई भूगोयर-सयई जेत्थु
पत्ता णिउ वणि-तणयहे पासि वसुदेउ-वि णज्जइ मत्त-गउ । वन्लइ देहि दवत्ति भज्जइ मरद्ध जे अज्जु तउ ॥
४
९
[७]
तो वीण सहासई ढोइयई वसुएवें ताई ण जोइयई। विरसइ जन्जरइ कु-सज्जियई __सव्वई लक्खण-परिवज्जियह सत्तारह-तंति सुघोस वीण सुह-लक्खण अलक्खण-विहीण वल्लइ य कुमारहो करे विहाइ वल्लहिय सुकंतहो कंत णाई पारद्ध मणोहरु तंति-वज्जु गं कारणु तत्थुप्पण्णु अज्जु णं जिणवर-सासणु रिसह-सारु णं बहुल-पक्ख-णहु मंद-तार परिचितइ मणे गंधव्वसेण किं वम्महु थिउ माणुस-मिसेण किं सग्गहो सुरवरु को-वि आउ किं किण्णरु किं गंधव्व-राउ
४
घत्ता
अण्णहो एउ ण रूउ एहु जगु जिणेवि समत्थु
अण्णहो विण्णाणु ॥ एत्तडउ । महु तणउं चित्तु किर केत्तडउ ॥ ९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org