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हरिवंशपुराणु
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तहिं काले पराइय विण्णि जोह में चंद-दिवायर दिण्ण-सोह तहिं एक्कु णवेप्पिणु चवइ एम परिपुण्ण-मणोरह अज्जु देव हउं अच्चिमालि इहु वाउवेउ णिय-रूवोहामिय-मयरकेउ वे अम्हइं तुम्हडं रक्खवाल सुणि कहामि कहतर सामिसाल ४ । वेयड्ढे कुंजरावत्तु णयरु तहिं असणिवेउ णामेण खयरू तहो तणिय तणय णामेण साम वीणा-पवीण-रामाहिराम कमलायरे कुंजरु जिणइ जो-ज्जि भत्तारु ताहे संभवइ सो-ब्जि सो तुहुं करि पाणिग्गहणु देव णिउ पुरु परिणाविउ भणेवि एम ८
घत्ता
सामाएवि लएवि , परिओसें थिउ वड्डारएण । गरुडे जेम भुयंगु णिउ णिसिहे हरेवि अंगाररण ॥
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जं णिउ वसुएउ महावलेण कुढि-लग्ग साम सहूं णिय-वलेण मरु मरु कहि महु पिउ लेवि जाहि जइ धीरउ तो रणे थाहि थाहि विज्जाहरु वलिउ कयंतु जेम तुडं महिल वराई हणमि केम परमेसरि पभणइ अक्खु तो-वि किं रक्खसि खंति " हणइ को-वि ४ पडिखलिउ विमाणु खणंतरेण अंगारउ ताडिउ असिवरेण तेण-वि परिचिंतिउ करमि एम ण मज्झु ण सामहे होइ जेम पण्ण-लहुए विज्जाहरेण मुक्कु भू-गोयरु चंपा-णयरे ढुक्कु जहि वासुपुज्ज-जिणदेव-भवणु णिसि-णिग्गमे इंदिय-दप्प-दवणु ८
घत्ता
वंदिउ परम-जिणिंदु परमेसरु तिहुयण-सिहर-गउ । जइ तुहुं णाह ण होंतु तो भव-मंसारहो छेउ कउ ॥
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