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हरिवंशपुराणु
बिईओ संधि
सिरि-सुग्गीव-सुवाउ परिणेप्पिणु णयरहो णोसरइ । णाई णिरंकुसु गाउ वसुएउ महा-वणु पइसरइ ॥१॥
[१] हरिवंसुब्भवेण हरि-विक्कम-सार-वलेण रणयं । दीसइ देवदारु-तल-ताली-तरल-तमाल-छण्णयं । लवलि-लवंग-लउय-जंबुंवर-अंव-कवित्थ-रिट्टयं । सम्मलि-सरल-साल-सिणि-सल्लइ-सीसव-समि-समिद्धयं । ४ चंपय-चूय-चार-रवि-चंदण-वंदण-बंद-सुंदरं । पत्तल-वहल-सीयल-च्छाय-लयाहर-सय-मणोहरं । मंथर-मलय-मारुयंदोलिय-पायव-पडिय-पुप्फयं । पुप्फटफोय(१)-सफल-भसलावलि-णाविय-पहिय-गुप्फयं । ८ केसरि-णहर-पहर-खर-दारिय-करि-सिर-लि(खि)त्त-मोत्तियं । मोत्तिय-पंति-कंति-धवलीकय-सयल-दिसा-वहंतियं । रवोल्ल-जलोल्ल-तल्ल-लोलंत-लोल-कोलउल-भीसणं । वायस-कंक-सेण-सिव-जंवुव-घूय-विमुक्क-णीसणं । मयगल-मय-जलोह-कय-कद्दम-संखुन्भं(?प्पं)त-वणयरं । फुरिय-फणिंद-फार-फणि-मणिगण-किरण-करालियंवरं । गिरि-गण-तुंग-सिंग-आलिंगिय-चंदाइच्च-मंडलं । तत्थ भयावणे वणे दीसइ णिम्मल-सोयलं जलं ।
१२
घत्ता
णाम सलिलावत्त णाई सुमितं मित्तु
लक्खिज्जइ मणहरु कमल-सरु । . अवगाहिउ णयणाणंदयरु ॥
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