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________________ परमो संधि [१२] णियच्छ्यिं मसाणयं जणावसाण-थाणयं उलूव-जूह-णाइयं पभूय भूय-छाइयं महीगवोवसेवियं मरुद्धवद्धवेवियं णिसा-तमंधयारियं जमाणणाणुकारियं चियग्गि-जाल-मालियं खगावली-वमालियं सरुंड-सूलियाउलं सिवा-सियाल-संकुलं णिसायरेक-कंदियं पसिद्ध-सिद्ध-सहियं तहि महा-मसाणए जमालयाणुमाणए घत्ता जायव-णाहु पइट्छु सहयरु दूरि थवेपिणु । मणुसु दद्ध णवाल (?) कट्ठइं(? अहिइं)मेलावेप्पिणु ।। तो सव्वाहरणई मेल्लियइं सत्तच्चिहिं उप्परि घल्लियई बोल्लाविउ सहयरु जाहि तुहुं सिवदेविहे एवहिं होउ सुहु पूरंतु मणोरह पट्टणहो सूराहिव-णंदण-णंदणहो कहिं चुक्कु सहोयरु पेसणहो हर उप्परि चडिउ हुवासणहो एत्तडउ चवेप्पिणु कहि-मि गउ सच्छंदु णिरंकुसु णाई गउ सहयरेण कहिउ सब्यहो पुरहो भायरहो णरिदंतेउरहो रोवंतई सव्वई उट्ठियई साहरणई पेक्खेवि अट्ठियई बंधवेहि विहाणइ दिण्णु जलु तहि कालि कुमार वि अतुल-वलु ८ घत्ता विजयखेडु पुरु पत्तु तहिं सुग्गीबें दिण्णउ । सरसइ-लच्छि-समाउ सई भूसेवि वे कण्णउ ॥ इय रिटणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए । पढमो समुहविजयाहिसेय-णामो इमो सग्गो ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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