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हरिवंशपुराण [१०] तं णिसुणेवि परवइ कुइउ मणे कोकिउ वसुएउ-कुमारु खणे तहो अलिय-सणेऐं लग्गु गले आलिंगेवि चुविउ सिर-कमले उच्चोलिहिं पुणु वइसारियउ पच्छण्ण-पउत्तिहिं वारियउ संपइ कुमार दीसहि विमणु परिहरु पुर-वाहिर-णिग्गमणु ४ वाओलि धूलि आयउ पबणु आयई विसहेप्पिणु फलु कवणु गयसालहिं मत्त गइंद धरे घरे पंगणे कंदुअ-कील करे पच्छिम-उज्जाणे मणोहरए कुरु केलि विउले केलीहरए अवरेहिं विणोएहिं अच्छु तिह विहाणलं अंगु ण होइ जिह ८
पत्ता वंधु-णिवंधणे वद्ध वाय-गुत्तिहिं छुद्धउ । थिउ वसुएव-गइंदु विणयंकुसेण णिवद्धउ ।।
[११] तहिं अवसरे णरवर-पुज्जियए सिवएविहे आणिउ खुज्जियए चामीयर-भायण-समलहणु परिमल-मेलाविय-भमर-यणु तं मंड कुमारे अवहरिउ तहो तण णिएप्पिणु दुच्चरिउ आरुद्छ सुछ सइलिंधि-मुहु आएहिं दुवालिहिं पत्त तुहुं ४ दिदु बंधणारु जिह मत्त-गउ कापुरिसहो धीरिम होइ कउ परियाणेवि भायर-चंचणउं किउ कज्जु कुमारें अप्पणउं णिकलिउ स-सहयरु एक्कु जणु गठ रयणिहिं भीसणु पेय-वणु जहिं जमु-वि छलिज्जइ डाइणिहि गह-भूय-पिसाएहि जोइणिहिं ८
पत्ता
तं पइसरइ मसाणु में सुरहु-मि भउ लावियउ ।
णावइ भुक्खियएण काले' मुहु णिवाइयउ ।। 10. 3a. उच्छोलिहि
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