________________
पढमो संधि
[८] जुवे णिक्कलंते णिक्कलइ क-वि पइसंते पइसइ तित्ति ण-वि . काउ-वि मयणग्गि-झुलुकियउ कह कह-वि ण पाणेहिं मुक्कियउ घरे कम्मु ण लग्गइ तियमइहिं वसुएव-रूव-मोहिय-मइहिं ओवाइउ दिज्जइ घरे जे घरे मेलावउ जक्ख दवत्ति करे ४ काहे-वि सरीरु जर-खेइयउ काहे-वि णिल्लाडु पसेइयउ तं ण घर ण चच्चरु ण-वि य सह जहिं णउ वसुएवहो तणिय कह काहे-वि पइ पासे परिद्वियउणं डहइ हुवासणु उट्ठियउ वोल्लाविय का-वि वयंसियए सो सुहउ ण फिट्टइ महु हियए णाहरणु ण रुच्चइ भोयणउं पहाणु वउण(?) फुल्लु विलेवणउं ८
घत्ता देवर-ससुर-पईहिं महु सरीरु रक्खिज्जइ । णिभरु गेह-णिवंधु चित्तु केण धरिज्जइ ॥
[९]
एहिय अवस्थ ज जाय पुरे पुर-पउर-महायणु भंजिवणु(?) अहो अंधकविहि सुहद-सुय । परमेसर परम-पसाउ करे वसुएवें पट्टणु मोहियउ घरिणिहिं घर-कम्मइं छंडियई जोइज्जइ मयणुम्मत्तियहि लइ भुजि भडारा रज्जु तुहूं
जे जे पहाण ते करेवि धुरे कूवारे गउ गरवइ-भवणु सिवदेवी-वल्लह सग्ग-चुय णिग्गमणु कुमारहो तणउं धरे ४
णं वम्मह-दंडें रोहियउ णिय-णाह-मुहई उम्मंडियइं तुह भायरु पर-कुलउत्तियहि पय जाउ कहि-मि जहिं लहइ सुहु ८
पत्ता
जं उत्पज्जइ वालु सइहि-मि णिय-भत्तारे'। तं अणुहव(१ र)इ असेसु णिम्मिर णाई कुमारे ॥
९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org