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[38] मथुरापति कंस के आदेश से दुष्ट अरिष्टासुर वृषभ के वेश में आया । युगल शंगों से गिरिशिला उखाडता हुआ, खर खुराम से धरणीतल खोदता हुआ, गले से हिलते डुलते सरोवर-वल्ली के जालों से युक्त, पदाघात से जलस्थल को कंपायमान करता हुआ, गर्जनारब से भुवनांतराल को भर देता हुआ, महादेव के नंदिगण को भी भय से ज्वरित करता हुआ, चन्द्रकिरणों से भी अधिक शुभ्र, कैलास के उच्च शिखर की शोभा को धारण करता हुआ, वह वृषभराज आकर गहरी चोट दे न दे इतने में ही कृष्ण ने अपने भुजदंडों से उसका कण्ठ कडकडाहट के साथ मोड दिया। गोविन्द का प्रतिमल्ल तीन भुवनों में भी कौन हो सकता है भला ? धवल को पराजित करने वाला हरि गोकुल में धवलगीतों में गाया जाता है। धवलों में भी जो धवल है उस कुलधवल की स्तुति कौन नहीं करता?'
वर्षावर्णन-गोवर्धनोद्धरण : काले जंते छज्जइ पत्तउ आसाढागमि वासारत्तउ
घत्ता हरियां पीयल दीसइ जणेण तं सुरधणु । उवरि पओहरहं णं णहलच्छिहि उप्परियणु ॥
दुवई-दिउं इंदचाउ पुणु पुणु अइ पंथिय-हियय-भेयहो । घण-वारण-पवेसि णं मंगल-तोरणु णह-णिकेयहो ।
जलु गलइ झलझलइ दरि भर सरि सरइ तडयउइ तडि पडइ गिरि फुडइ सिहि णडइ मरु चलइ तरु घुलइ जल थलु वि गोउलु वि णिरु रसिउ भय-तसिउ थरहरइ किर मरइ
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