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________________ [25] मानो इससे ही संलग्न हो ऐसा मत्ताबालिका मात्रा का उदाहरण है : ___ कमल-कुमुआण एक उप्पत्ति ससि तो वि कुमुआअरहं देइ सोक्खु कमलहं दिवाअरु । पाविज्जइ अवस फलु जेण जस्स पासे ठवेइउ ॥ ___ (स्व०च्छ०,४-९-१) 'कमल और कुमुद दोनों को प्रभवस्थान एक ही होते हुए भी कुमुद्दों के लिए चन्द्र एवं कमलों के लिए सूर्य सुखदाता है। जिसने जिसके पास धरोहर रखी हो उसोसे अपने कर्मफल प्राप्त होते हैं। __ मत्तमधुकरो प्रकार की मात्रा का उदाहरण सम्भवतः देवको कृष्ण को देखने को आई उसी समय के गोकुलवर्णन से सम्बन्धित है-मूल और अनुवाद इस प्रकार है: ठामठामहिं घास-संतुदठ रतिहि परिसंठि आ रोमंथण-वस-चलिअ-गंडआ । दीसहि धवलुज्जला जोण्हा-णिहाणा इव गोहणा ॥ (स्व०च्छ०, ४-६-५) 'स्थान-स्थान पर रात्रि में विश्रान्ति के लिये ठहरे हुए और जुगाली में जबड़े हिलाते हुए गोधन दिखाई देते हैं। मानों ज्योत्स्ना के धवलोज्ज्वल पुंज ।' इन पद्यों से गोविन्द कवि की अभिव्यक्ति की सहजता का तथा उसकी प्रकृतिचित्रण और भावचित्रण की शक्ति का हमें थोड़ा सा परिचय मिल जाता है। यह उल्लेखनीय है कि बाद के बालकृष्ण को क्रीडाओं के जैन कवियों के वर्णन में कहीं गोपियों के विरह की तथा राधा सम्बन्धित प्रणयचेष्टा की बात नहीं है। दूसरी बात यह है कि मात्रा या रड्डा जैसा जटिल छन्द भी दीर्घ कथात्मक वस्तु के निरूपण के लिये कितना लचीला एवं लयबद्ध हो सकता है यह बात गोविन्द ने अपने सफल प्रयोगों से सिद्ध की । आगे चलकर हरिभद्र से इसीका समर्थन किया जाएगा । १. रहीम के प्रसिद्ध दोहे का भाव यहां पर तुलनीय है : जल में बसे कमोदनी चंदा बसे अकास । जो जाहिं को भावता सो ताहि के पास ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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