SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [13) पुराण', 'जैन महाभारत' आदि लाक्षणिक नाम दिए गए हैं । किन्तु इस विषय में सर्वत्र एकवाक्यता नहीं है। किसी विशिष्ट अंश को समानप्राधान्य देने वाली कृतियों के भिन्न-भिन्न नाम भी मिलते हैं। जैसे कि आरम्भ में सूचित किया था, जैन पुराणकथाओं का स्वरूप पर्याप्त मात्रा में रूढिबद्ध एवं परम्परानियत था। दूसरी और अपभ्रंश कृतियों में भी विषय, वस्तु आदि में संस्कृतप्राकृत की पूर्व प्रचलित रचनाओं का अनुसरण होता था । इसलिए यहाँ पर अपभ्रंश कृष्णकाव्य का विवरण एवं आलोचनो प्रस्तुत करने के पहले जैन परम्परा को मान्य कृष्णकथा की एक सामान्य रूपरेखा प्रस्तुत करना आवश्यक होगा। इससे उत्तरवर्ती आलोचना आदि के लिए आवश्यक सन्दर्भ सुलभ हो जायगा। नीचे दी गई रूपरेखा सन् ७८४ में रचित दिगम्बराचाये जिनसेन के संस्कृत 'हरिवंशपुराण' के मुख्यतः ३३. ३४, ३५, ३६, ४० और ४१ इन सर्गों पर आधारित है। श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र के सन् ११६५ के करीब रचे हुए संस्कृत 'विशष्टिशलाकापुरुषचरित' के आठवे पर्व में भी सविस्तार कृष्ण चरित्र है। जिनसेन के वृत्तान्त से हेमचन्द्र का वृत्तान्त कुछ भेद रखता है। कुछ महत्व की विभिन्नताएं पादटिप्पणियों से सूचित की गई हैं।' कृष्णचरित्र अत्यन्त विस्तृत होने से यहां पर उसकी सर्वांगीण समालोचना करना सम्भव नहीं है । जैन कृष्णचरित के स्पष्ट रूप से दो विभाग किए जा सकते हैं। कृष्ण और यादवों के द्वारावती-प्रवेश तक एक विभाग और शेष चरित्र का दूसरा विभाग । पूर्वभाग में कृष्ण जितने केन्द्रवर्ती है उतने उत्तर भाग में नहीं है । इसलिए नीचे दी गई रूपरेखा पूर्व-कृष्णचरित्र तक सीमित को गई है। ३. जैन कृष्णकथा की रूपरेखा हरिवंश में, जो कि हरिराजा से शुरू हुआ था, कालक्रम से मथुरा में यदु नामक राजा हुआ । उसके नाम से उसके वंशज यादव कहलाए । यद का पुत्र नरपति हुआ और नरपति के पुत्र शूर और सुबीर । सुवीर को मथुरा का राज्य देकर शूर ने कुशद्य देश में शौर्यपुर बसाय।। शूर के अन्धकवृष्णि १. 'हरिवंशपुराण' का संकेत-हपु. और विशष्टिशलाकापुरुषचरित' का संकेत 'विच.' रखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy