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________________ [12] "महापुराण' भी कहा जाता था। महापुराण में दो विभाग होते थे-आदिपुराण और उत्तरपुराण । आदिपुराण में प्रथम तीर्थकर और प्रथम चक्रवर्ती के यरित्र दिए जाते थे । उत्तरपुराण में शेष महापुरुपों के चरित्र । सभी महापुरुषों के चरित्रों का निरूपण करने वाली ऐसी रचनाओं के अलावा कोई एक तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि के चरित्र को लेकर भी कृतियाँ रची जाती थीं । ऐसी रचनाएं 'पुराण' नाम से ख्यात थी। कृष्ण वासुदेव का चरित्र तीर्थकर अरिष्टनेमि के चरित्र के साथ संलग्न था। उनके चरित्रों को लेकर की गई रचनाएं 'हरिवंश या 'अरिष्टनेमिपुराण' के नाम से ज्ञात हैं। जहाँ कृष्ण. वासुदेव और वलराम को कथा स्वतन्त्र रूप से प्राप्त है, वहां भी वह अन्य एकाधिक कथाओं के साथ संलग्न तो रहती ही है। जैन कृष्णकथा नियम से ही अल्पाधिक मात्रा में अन्य तीन चार विभिन्न कथासूत्रों के साथ गुम्फित रहती है । एक लथासूत्र होता है कृष्णपिता वसुदेव के परिभ्रमण की कथा का, दुसरा बाइसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के चरित्र का, तो नोसरा कथासूत्र होता है पाण्डवों के चरित्र का। इनके अतिरिक्त मुख्य-मुख्य पात्रों के भवान्तरों की कथाएं भी दी जाती हैं । वसुदेव ने एक सौ बरस तक विविध देशों में परिभ्रमण करके अनेकानेक मानवों और विद्याधरों की कन्याएं प्राप्त की थीं-उसको रसिक कथा 'वसुदेवहिण्डि' के नाम से जैन परम्परा में प्रचलित थी । वास्तव में वह गुणाढ्य को लुप्त 'बहत्कथा' का हो जैन रूपान्तर था । कृष्णकथा के प्रारम्भ में वासुदेव का वंशवर्णन और चरित्र आता है। वहीं पर वसुदेव की परिभ्रमणकथा भी छोटे-मोटे रूप में दी जाती है । अरिष्टनेमि कृष्ण वासदेव के चचेरे भाई वे। बाईसवे तीर्थकर होने से उनका चरित्र जैनधर्मियों के लिए सर्वाधिक महत्त्व रखता है । अतः अनेक बार कृष्णचरित्र नेमिचरित्र के अंग रूप में मिलता है। इनके अतिरिक्त पाण्डवों के साथ एवं पाण्डव-कौरव युद्ध के साथ कृष्ण का घनिष्ठ सम्बन्ध होने से कृष्ण के उत्तर चरित्र के साथ महाभारत की कथा भी प्रथित होती थी। फलस्वरूप ऐबी रचनाओं का 'जैन महाभारत ऐसा भी एक नाम प्रचलित था। इस प्रकार सामान्यतः जिस अंश को प्राधान्य दिया गया हो उसके अनुसार कृष्णचरित्र विषयक रचनाओं को 'अरिष्टनेमिचरित्र'(या 'नेमिपुराण'), 'हरिवंश', 'पाण्डव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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