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________________ [11] अमंगतियां बताकर उसे मिध्या कहती है और उससे भिन्न स्वरूप की कथा, जिसे वह सही समझती है प्रस्तुत करती है । तथापि जहां-जहां तक सभी मुख्य पात्रों का, मुख्य घटनाओं का और उनके क्रमादि का सम्बन्ध है वहाँ सर्वत्र जैन परम्परा ने हिन्दू परम्परा का ही अनुसरण किया है। जैन कृष्णकथा में भी मुख्य-मुख्य प्रसंग, उनके क्रम, एवं पात्र के स्वरूप आदि दीर्घकालीन परम्परा से नियत हैं । अतः जहाँ तक कथानक का सम्बन्ध है जैन कृष्णकथा पर आधारित विभिन्न कृतियों में परिवर्तनों के लिए स्वल्प अवकाश था। फिर भी कुछ छोटे मोटे विवरणों कार्यों के प्रवृत्ति-निमित्तों एवं निरूपण की इयत्ता के विषय में एक कृति और दूसरी कृति के बीच पर्याप्त मात्रा में अन्तर है। दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के कृष्णचरित्रों की भी अपनी-अपनी विशिष्टताएं हैं और उनमें भी कभी कभी एक धारा के अनुसरणकर्ताओं में भी आपस-आपस में कुछ भिन्नता देखी जाती है । मूल कथानक को कुछ विषयों में सम्प्रदोयानुकूल करने के लिए कोई सर्वमान्य प्रणालिका के अभाव में जैन रचनाकारों ने अपने-अपने मार्ग बना लिए हैं । जैन कृष्णचरित्र के अनुसार कृष्ण न तो कोई दिव्य पुरुष थे न तो ईश्वर के अवतार या 'भगवान् स्वयं । वे मानव ही थे, पर थे एक असामान्य शक्तिशाली वीरपुरुष एवं सम्राट । जेन पुराणकथा के अनुसार प्रस्तुत कालखण्ड में तरसठ महापुरुष या शलाका-पुरुष हो गए हैं। चौबोस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नव वासुदेव (या नारायण), नव बलदेव आर नव प्रतिवासुदेव । वासुदेवों को समृद्धि, सामथ्य एवं पदवी चक्रवतियों से आधी होती थी । प्रत्येक वासुदेव तीन खण्ड पर शासन चलाता था । वह अपने प्रतिवासुदेव का युद्ध से संहार करके वासुदेवत्व प्राप्त करता था और इस कार्य में प्रत्येक बलदेव उसका सहाय्य करता था । राम, लक्ष्मण और रावण क्रमशः आठवे बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव थे । नवी त्रिपुटो थो कृष्ण, बलराम और जरासन्ध । तिरसठ महापुरुषों के चरित्रों को प्रथित करने वाली रचनाओं को 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचारत"या 'त्रिषष्टिमहापुरुषचरित ऐसा नाम दिया गमा है । जब नव प्रतिवासुदेवों की गिनती नहीं की जाती थी तब ऐसी रचना 'चतुष्पंचाशत्महापुरुषारत' कहलाती यी। दिगम्बर परम्परा में उसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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