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________________ ७२ णिय-मणे चिताविउ महुमहणु उववासें हरि-वलएव थिय तो जक्खिलवे तुट्ठएण सीराउद - खरंगा उद्द तो गरुड - महद्धय-ताल-धय अवहरिय कण्ण कुढे लग्गु वहु पाडिउ पसेणु जंबव - रुहेण महचंदु गएण रणुज्ज एण बिज्जाहरि परिणिय जंबुवइ अण्णाहि दिणे णयणानंदय रे पहु मेरुचंदु चंदमइ तिय आपणु दिष्ण गोरि हरिहे लक्खण सुसीम गंधारि तिह परमाइ पारणिय महुमण इय अट्ठ महाएविहिं सहिउ भुंजंतु रज्जु थिउ महुमहणु घरे हरे णं कामवेणु सवइ घरे घरे वसुहार णाई पड़इ अणहि दिणे उबवण पइसरेवि मंडेपिणु रुपिण अल्लविय मायाविणि अ - णिमिस दिट्टि किय उप्पाइय का वि अउव्व किय Jain Education International घत्ता दिण्णउ णहयल - गामिणिउ । हरि-वाहिणि-खग-वाहिणिउ ॥ हरिवंसपुराणु किह ण कियउ कण्ण-पाणि-गहणु वर - मंताराहण तुरिड किय [ ३ ] desढो दाहिण - सेढि गय रणु जाउ परोप्पर दुव्विसहु जिउ जंवुमालि सी उद्देण जंवर गोविंदे दुज्ज एण पइसारिय पुरवरु वारवइ सुमनोहर - वीयसोय-णयरे किय कण्हे तेहिं विवाह किय सुहुं थियई दुवारावइ - पुरिहे घन्ता सस लहुयारी रेवइहे । पुण्ण मणोरह देवst || [ ४ ] अणुवि उर - सिरिए परिगहिउ धण- घण्ण-सुवण्ण-समिद्ध-जणु धरे धरे णं धणय - दव्वु दवइ घरे घरे चितियउ समावडइ केलीहरे सुरय- कील करेवि मणि - वाविहे पासे परिद्वविय वण- देवय णं पच्चक्ख थिय उ णावइ जिह सामण्ण तिय For Private & Personal Use Only ८ ४ ८ ८ ९ www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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