________________
दसमो संधि
उब्जित - महागिरिवर - सिहरे सई रूपिणि-पाणि-गहगु किउ
परिणेपिणु रुपिणि महुमहणु पइसरइ स-वंधउ बारवइ पायाले सुशलए धरणि-वहे गोविंदे णयणानंदयरु धणु धण्णु सुवण्णु दिण्णु अतुल कुप्पर - कुंडाई स- कुप्पियई हय-गय-रह- चामरर- चिंघाई एयई अवराइ-मि जेन्तियइं
सच्छायई अंगई रूपिणिहे णिय-चरिएहि पावइ को-वि ण-वि
ते वासुदव- वलएव जहि हरि अच्छइ एक्कु कण्ण-रयणु वे डूढो दाहिण - सेढियहे जंबूपुर - णाहहो जंगबहो सुड जंवुमालि सुय जंबुबइ तो कण्हे दूर बिखज्जियर
Jain Education International
जिय- सिसुपाल - महाहवेण । माहहो मासहो माहवेण ||
[ १ ]
पर-पवर - समर-भर- उठवहणु जहि मण - - संभव हो - वि मणु रमइ मिज्जइ जइ उवमाणु तहे रुपण समपि णियय - घरु जिय- लोय - सारु जीविउ विठलु सोवण्णई थालई रुप्पियई छत्तई वाइत्त-समिद्धाई को अक्खेवि सकइ तेन्तियइं
घप्ता
सच्चहे जायई सामलई । रिसि-अवमाण- दुमहो फलई ॥ ९
[ २ ]
पडिवारउ णारउ आउ तहिं रुंदारविंद- सुंदर - वयणु बिज्जाहरपुर- परिवेढियहे प्रिय जंवसेण णामेण तहो कल- कोइल - कंठि मराल-गइ आइउ तिय- रयण-विवज्जियड
१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org