________________
णमो संधि
अहिसिंचिए णेमि-भडारए सिसुपालहो सहुं जीयासए
मेरु-सिहरे संकंदणेण । रूपिणि हरिय जणहणेण ॥१
ताम देव-दाणव-कलियारउ ता वारवइ पराइउ णारत कविल-जडा-चूडकिय-मत्थर, छत्तिय-भिसिय-कमंडलु-हत्थउ . जोग्गवट्टयालंकिय-विग्गहु धोय-धवल-करवीण-परिग्गडु जाणोवइय-सत्त-सर-मंडिउ हिंडणसीलु महारण-कोड्डिउ ४ चरिम-देहु गयणंगण-गामिउ वंभचरिय-उववास-किलामिउ पर-सम्माण-दुहिउ गउ तेत्तहे सच्चहाम सीहासणे जेत्तहे अच्छइ णियय-रूउ जोयंती मोहण-जालु णाई ढोयंती गं लायण्ण-तलाए तरंती गं जगु णयण-सरेहिं विधती ८.
घता तं पारि-रयणु वण्णुज्जल रूवोहामिय-पह-पसरु । णारायणु-कंचण-जडियउं. अवसे होइ महग्घयरु ॥
[२] णव-जोव्वण-सोहग्ग-मयंधए दप्पण-दित्ति-णिवंधण-बंधए घरु पइसंतु ण जोइन जइवरु झत्ति पलितु णाई वइसाणरु जाव ण दुट्ठहे भग्गु मडप्फरु ताव ण करमि कि पि कम्मतरु एम भणेवि स-रोसु गउ तेत्तहे थिउ अत्थाणे जणह्णु जेत्तहे अन्भुत्थाणु कारेवि अ-गव्वेहि रुइरासणे वइसारित सव्वेहिं वल-णारायणेहिं पुणु पुच्छित गुरु एत्तडउ कालु कहिं अच्छित
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org