________________
८२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
कहे कि मैं तो कुम्हार हूँ, सुनार नहीं हूँ, तो क्या अनुचित कहता है। कुम्हार की दृष्टि से यद्यपि वह सत् है, तथापि सुनार की दृष्टि से वह असत् है । कल्पना कीजिए-सौ घड़े रखे हैं। घड़े की दृष्टि से तो सब घड़े हैं, इसलिए सत् हैं। परन्तु प्रत्येक घड़ा अपने गुण, धर्म और स्वरूप से ही सत् है, पर - गुण, पर - धर्म और पर - रूप से असत् है। घड़ों में भी आपस में भिन्नता है। एक मनुष्य अकस्मात् किसी दूसरे के घड़े को उठा लेता है, और फिर पहचानने पर यह कहकर कि यह मेरा नहीं है, वापिस रख देता है । इस दशा में घड़े में असत् नहीं तो क्या है ? 'मेरा नहीं है'---इसमें मेरा के आगे जो नहीं, शब्द है, वही असत् का, अर्थात् नास्तित्व का सूचक है। प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व अपनी सीमा में है, सीमा से बाहर नहीं । अपना स्वरूप अपनी सीमा है, और दूसरों का स्वरूप अपनी सीमा से बाहर पर-रूप है। यदि हर एक वस्तु, हर एक वस्तु के रूप में सत् हो जाए, तो फिर संसार में कोई व्यवस्था ही न रहे । दूध, दूध के रूप में भी सत् हो, दही के रूप में भी सत हो, तब तो दूध के बदले में दही, छाछ या पानी हर कोई ले या दे सकेगा। याद रखो-दूध दूध के रूप में सत् है दही आदि के रूप में नहीं। क्योंकि स्व-रूप सत् है, और पर - रूप असत् ।
तत्व का
अस्तित्व
से बाहर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org