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महावीर के सिद्धान्त ८३
दार्शनिक जगत् का सम्राट् स्याद्वाद
• स्याद्वाद का अमर सिद्धान्त दार्शनिक जगत् में बहुत ऊँचा सिद्धान्त माना गया है। महात्मा गाँधी जैसे संसार के महान् पुरुषों ने भी इसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। पाश्चात्य विद्वान् डाँ० थामस आदि का भी कहना है कि - "स्याद्वाद का सिद्धान्त बड़ा ही गम्भीर है । यह वस्तु की भिन्न भिन्न स्थितियों पर अच्छा प्रकाश डालता है ।" बस्तुतः अनेकान्तस्याद्वाद सत्य ज्ञान की कुंजी है । आज संसार में जो सब ओर धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रिय आदि वैरविरोध का बोलबाला है, वह अनेकान्त एवं स्याद्वाद के द्वारा ही दूर हो सकता है ? दार्शनिक क्षेत्र में अने'कान्त दर्शन - सम्राट् है, उसके सामने आते ही कलह, ईर्ष्या, अनुदारता, साम्प्रदायिकता और संकीर्णता आदि दोष भाग खड़े होते हैं । जब कभी विश्व में शान्ति का सुराज्य स्थापित होगा, तो वह अनेकान्त एवं अनेकान्त से प्रतिफलित स्याद्वाद के द्वारा ही होगा - यह बात अटल है, अचल है ।
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अनेकात ही विरोध में अनुरोध, असहयोग में सहयोग, वैषम्य में साम्य स्थापित कर सकता है । चक्रवर्तीसम्राट् ही परस्पर विरोधी विभिन्न छोटे-मोटे राजाओं को एक छत के नीचे ला सकता है, और
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